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________________ उनीसवां शतक : उद्देशक 3] विवेचन-पूर्वोक्त बारह द्वारों के माध्यम से प्रप-तेजो-वाय-वनस्पतिकायिकों के साधारण शरीरादि के विषय में निरूपण-अप्कायिक जीवों के विषय में स्थिति (उत्कृष्ट 7 हजार वर्ष) को छोड़ कर अन्य सब बातें पृथ्वीकायिक जीवों के समान हैं। अग्निकायिक जीवों के विषय में भी उत्पाद स्थिति और उद्वर्तना को छोड़ कर अन्य सब बातें पृथ्वी कायिकवत् हैं। अग्निकायिक जीव तिर्यञ्च और मनुष्य में से आकर उत्पन्न होते हैं। उनकी उत्कृष्ट स्थिति तीन अहोरात्र की होती है / अग्निकाय से निकल (उद्वर्तन) कर जीव तिर्यचों में ही उत्पन्न होते हैं। वायुकायिक और अग्निकायिक जीवों की शेष बातें पृथ्वी कायिक वत् हैं। विशेष यह है कि पृथ्वीकायिक जीवों में आदि की चार लेश्याएँ होती हैं, जब कि अग्निकायिक और वायुकायिक जीवों में आदि की तीन अप्रशस्त लेश्याएँ होती हैं ! पृथ्वीकायिक जीवों में आदि के तीन समुद्घात (वेदना, कषाय और मारणान्तिक) होते हैं. जबकि वायुकाय में वैक्रियशरीर के सम्भव होने से वेदना, कषाय, मारणान्तिक और वैक्रिय, ये चार समुद्घात होते हैं / वनस्पतिकायिकों में अनन्त वनस्पतिकायिक जीव मिल कर एक साधारण शरीर बांधते हैं, फिर पाहार करते हैं / यहाँ वनस्पतिकायिक जीवों का प्रहार नियमतः छह दिशाओं का बताया है, वह बादर निगोद (साधारण) वनस्पतिकाय की अपेक्षा सम्भवित है / सूक्ष्म वनस्पतिकायिक जीव लोकान्त के निष्कुटों (कोणों) में भी होते हैं, उनके तीन, चार या पांच दिशानों का आहार भी सम्भवित है। बाद र निगोद बनस्पतिकायिक जीव लोकान्त के निष्कुटों में नहीं होते, किन्तु वे लोक के मध्यभाग में होते हैं।' एकेन्द्रिय जीवों का जघन्य-उत्कृष्ट अवगाहना की अपेक्षा अल्प-बहुत्व 22. एएसि णं भंते ! पुढविकाइयाणं आउकाइयाणं तेउका० वाउका. वणस्सतिकाइयाणं सुहमाणं बादराणं पज्जत्तगाणं अपज्जत्तगाणं जाय जहन्नुक्कोसियाए ओगाहणाए कयरे कयरेहितो जाव विसेसाहिया वा? गोयमा ! सध्यस्थोवा सुहमनिप्रीयस्स अपज्जत्तगास जहग्निया प्रोगाहणा ? सुहमवाउकाइयस्स अपज्जत्तगस्स जहग्निया ओगाहणा असंखेज्जगुणा 2 / सुहुमतेउकाइयस्स अपज्जत्तस्स जहनिया ओगाहणा असंखेज्जगुणा 3 / सुहुमआउकाइयस्स अपज्जत्तस्स जहन्निया प्रोगाहणा असंखेज्जगुणा 4 // सुहमपुढविका० अपज्जत्तस्स जहस्निया ओगाहणा असंखेज्जगुणा 5 / बादरवाउकाइयस्स अपज्जत्तगस्स जहग्निया प्रोगाहणा असंखेज्जगुणा 6 / बादरतेउकाइयस्स अपज्जत्लयरस जहन्निया प्रोगाहणा असंखेज्ज गुणा 7 / बादरआउ० अपज्जत्तगस्स महन्निया ओगाहणा असंखेज्जगुणा 8 / बादरपुढविकाइयस्स अपज्जत्तगस्स जहन्निया प्रोगाहणा असंखेज्जगुणा 9 / पत्तेयसरीरबादरवणस्स इकाइयस्स बादरनिनोयरस य, एएसि णं अपज्जत्तगाणं जहनिया प्रोगाहणा दोन्ह वि तुल्ला असंखेज्जगुणा 1011 / सुहमानगोयरस पज्जत्तगस्स जहन्निया मोगाहणा असंखेज्जगुणा 12 / तस्सेव अपज्जत्तगस्स उनकोसिया ओगाहणा विसेसाहिया 13 / तस्स देव पज्जत्तगरस उपकोसिया प्रोगाहणा विसेसाहिया ----- - - - 1. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 764 / (ख) भगवती. विवेचन (4. घेवरचन्दजी) भा. 6 1. 2780-81 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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