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________________ उन्नीसवां शतक : उद्देशक 3] [767 तथा विशेषाधिक है / 30-31-32. उससे पर्याप्त बादर अग्निकायिक की जघन्य, अपर्याप्त बादर अग्निकायिक की उत्कृष्ट एवं पर्याप्त बाद र अग्निकायिक की उत्कृष्ट अवगाहना असंख्य गुणी एवं विशेषाधिक है। 33-34-35. इसी प्रकार उससे पर्याप्त बादर अप्कायिक की जघन्य, अपर्याप्त बादर प्रकायिक की उत्कृष्ट एवं पर्याप्त बादर अप्कायिक की उत्कृष्ट अवगाहना असंख्यातगुणी एवं विशे। धिक है / 36-37-38 उससे पर्याप्त बादर पृथ्वीकायिक की जघन्य, अपर्याप्त बादरपृथ्वी कायिक की उत्कृष्ट तथा पर्याप्त बादर पृथ्वीकायिक की उत्कृष्ट अवगाहना असंख्यातगुणी तथा विशेषाधिक है / 36. उससे पर्याप्त बादर निगोद की जघन्य अवगाहना असंख्यातगुणी है / 40. अपर्याप्त बादर निगोद की उत्कृष्ट अवगाहना विशेषाधिक है, और 41. पर्याप्त बादर निगोद की उत्कृष्ट अवगाहना विशेषाधिक है / 42. उससे पर्याप्त प्रत्येकशरीरी बादर वनस्पतिकायिक की जघन्य अवगाहना असंख्यातगुणी है 43. उससे अपर्याप्त प्रत्येक शरीरी बादर वनस्पतिकायिक की उत्कृष्ट अवगाहना असंख्यातगुणी है और 44. उससे पर्याप्त प्रत्येकशरीरी बादर वनस्पतिकायिक की उकृष्ट अवगाहना असंख्यातगुणी है / विवेचन-फलितार्थ-पृथ्वीकाय, अप्काय, अग्निकाय, वायुकाय और निगोद बनस्पतिकाय, इन पांचों के सूक्ष्म और बादर दो-दो भेद होते हैं। इनमें प्रत्येकशरीरी वनस्पति को मिलाने से ग्यारह भेद होते हैं। इनके प्रत्येक के पर्याप्त और अपर्याप्त भेद से 22 भेद हो जाते हैं। इनकी जघन्य अवगाहना और उत्कृष्ट अवगाहना के भेद से 44 भेद होते हैं। इन्हीं 44 स्थावर जीवभेदों की अवगाहना का अल्प-बहुत्व यहाँ (प्रस्तुत सूत्र 22 में) बताया गया है। पृथ्वी आदि की अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग मात्र होने पर भी उसके असंख्येय भेद होते हैं / इसलिए अंगुल के असंख्यातवें भाग की परस्परापेक्षा से असंख्येयगुणत्व में कोई विरोध नहीं आता / प्रत्येकशरीर वनस्पतिकाय की उत्कृष्ट अवगाहना सहस्र योजन से कुछ अधिक की समझनी चाहिए।' एकेन्द्रिय जीवों में सूक्ष्म सूक्ष्मतरनिरूपण 23. एयरस णं भंते ! पुढविकाइयस्स प्राउकाइयस्स तेउकाइयस्स वाउकाइयस्स वणस्सतिकाइयस्स य कयरे काये सन्चमुहुमे ?, कयरे काये सब्यसुहुमतराए ? गोयमा ! वणस्सतिकाए सम्बसुहुमे, वसतिकाए सम्बसुहुमतराए / [23 प्र. भगवन् ! पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक और वनस्पतिकायिक, इन पाँचों में कौन-सी काय सब से सूक्ष्म है और कौन-सी सूक्ष्मतर है / [23 उ.] गौतम ! (इन पांचों कायों में से) वनस्पतिकाय सबसे सूक्ष्म है, सबसे सूक्ष्मतर है। 24. एयरस पं भंते ! पुढविकाइयस्स आउकाइयस्स तेउकाइयरस वाउकाइयरस य कयरे काये सव्वसुहमे ?, कयरे काये सध्वसुहुमतराए ? गोयमा ! बाउकाये सव्वसुहुमे, बाउकाये सबसुहुमतराए / 1. भगवती. अ. वत्ति, पत्र 765 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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