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________________ दसमो उद्देसओ : 'सोमिल' दसवाँ उद्देशक : 'सोमिल' भावितात्मा अनगार के लब्धि-सामर्थ्य से असि-क्षुरधारा-अवगाहनादि का प्रतिदेशपूर्वक निरूपण 1. रायगिहे जाव एवं वदासि-- [1] राजगृह नगर में भगवान् महावीर स्वामी से, गौतम स्वामी ने इस प्रकार पूछा२. [1] अणगारे णं भंते ! भावियप्पा असिधारं वा खुरधारं वा ओगाहेज्जा ? हंता, ओगाहेज्जा। [2-1 प्र.] भगवन् ! क्या भावितात्मा अनगार (वैक्रियलब्धि के सामर्थ्य से) तलवार की धार पर अथवा उस्तरे की धार पर रह सकता है ? [2-1 उ.] हाँ, गौतम ! (वह) रह सकता है / [2] से गं तत्थ छिज्जेज्ज वा भिज्जेज्ज वा ? जो इण? सम8 / णो खलु तत्थ सत्थं कमति / [2-2 प्र.] (भगवन् ! ) क्या वह वहाँ (तलवार या उस्तरे की धार पर) छिन्न या भिन्न होता है ? [2-2 उ.] (गौतम ! ) यह अर्थ (बात) समर्थ (शक्य) नहीं। क्योंकि उस (भावितात्मा) पर शस्त्र संक्रमण नहीं करता, (नहीं चलता।) 3. एवं जहा पंचमसते (स० 5 उ०७ सु०६-८) परमाणुपोग्गलबत्तन्यता जाव अणगारे णं भंते ! भावियप्पा उदावत्तं वा जाव नो खलु तत्थ सत्यं कमति / [3] इत्यादि सब पंचम शतक के सप्तम उद्देशक (के. सू. 6-8) में कही हुई परमाण-पुद्गल की वक्तव्यता, यावत्-हे भगवन् ! क्या भावितात्मा अनगार उदकावर्त (जल के भंवरजाल) में यावत् प्रवेश करता है ? इत्यादि (प्रश्न तक तथा उत्तर में) यावत् वहाँ शस्त्र संक्रमण नहीं करता, (यहाँ तक कहना चाहिए।) विवेचन-भावितात्मा अनगार का वैकियलब्धि-सामर्थ्य- यहां तीन सूत्रों (1-3) में भावितात्मा अनगार के द्वारा वैक्रियलब्धि के सामर्थ्य से खड्ग आदि शस्त्र पर चलने और प्रवेशादि करने का पंचम शतक के अतिदेशपूर्वक प्रतिपादन किया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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