________________ नवमो उद्देसओ : 'भविए' नौवाँ उद्देशक : भव्य (द्रव्यने रयिकादि) नरयिकादि चौबीस दण्डकों में भव्य-द्रव्यसम्बन्धित प्रश्न का यथोचित युक्तिपूर्वक समाधान 1. रायगिहे जाव एवं वयासि[१] राजगृह नगर में गौतमस्वामी ने भगवान महावीर स्वामो से यावत् इस प्रकार पूछा२. [1] अस्थि णं भंते ! भवियादब्वनेरइया, भवियदन्वनेरइया ? हंता, अस्थि / [2-1 प्र.] भगवन् ! क्या भव्य द्रव्य-नरयिक-'भव्य-द्रव्य-नैरयिक' है ? [2-1 उ.] हाँ, गौतम ! है / [2] से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ -मवियदवनेरइया, मवियदन्वनेरइया ? गोयमा ! जे भविए पंचेदियतिरिक्खजोणिए वा मणुस्से वा नेरइएसु उववज्जित्तए, से तेणठेणं / (2.2 प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहते हैं कि भव्य-द्रव्य-नैयिक-'भव्य-द्रव्य नरयिक' है ? 2-2 उ.] गौतम ! जो कोई पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्च-योनिक या मनुष्य, (भविष्य में) नैरयिकों में उत्पन्न होने के योग्य है, वह भव्य-द्रव्य-नैरयिक कहलाता है / इस कारण से ऐसा यावत् कहा गया है। 3. एवं जाव थणियकुमाराणं / [3] इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमार पर्यन्त जानना चाहिए / 4. [1] अत्थि णं भंते ! भवियदवपुढविकाइया, भविपदध्वपुढविकाइया ? हंता, अत्थि। [4.1 प्र] भगवन् ! क्या भव्य-द्रव्य-पृथ्वीकायिक--भव्य-द्रव्य-पृथ्वी का यिक है ? [4-1 उ.] हाँ, गौतम ! (वह ऐसा ही) है। [2] से केणठेणं० ? गोयमा ! जे भविए तिरिक्खजोणिए वा मणुस्से वा देवे वा पुढविकाइएसु उवज्जिनए, से तेणठेणं० / [4-2 प्र.] भगवन् ! ऐसा क्यों कहते हैं, कि भव्यद्रव्य-पृथ्वीकायिक—'भव्यद्रव्य पृथ्वीकायिक है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org