________________ अठारहवां शतक : उद्देशक 3] 6. [3] मणुस्सा णं भंते ! णिज्जरापोग्गले कि जाणंति पासंति आहारेति, उदाहु ण जाणंति ण पासंति णाहारंति ? गोयमा ! अत्थेगइया जाणंति 3, अत्थेगइया ण जाणंति, ण पासंति, आहारति / [9.3 प्र.] भगवन् ! क्या मनुष्य उन निर्जरापुद्गलों को जानते-देखते हैं और ग्रहण करते हैं, अथवा वे नहीं जानते-देखते, और नहीं बाहरण करते हैं ? [9-3 उ.] गौतम ! कई मनुष्य उन पुद्गलों को जानते-देखते हैं और ग्रहण करते हैं, कई मनुष्य नहीं जानते-देखते, किन्तु उन्हें ग्रहण करते हैं / 9. [4] से केपट्टणं भंते ! एवं बुच्चा--'अत्थेगइया जाणंति 3, अत्यगइया न जाणंति, न पासंति, आहारति ? गोयमा ! मणुस्सा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा--सण्णीभूया य असणीभूया य / तत्थ णं जे ते असण्णीभूया, ते न जाणंति, न पासंति, आहारैति / तत्थ णं जे ते सण्णीभूया, ते दुविहा प० सं०-- उवउत्ता अणुव उत्ता य / तत्थ णं जे ते अणुवउत्ता, ते न जाणंति, न पासंति, आहारैति / तत्थ णं जे ते उवउत्ता, ते जाणंति 3 / से तेण?णं गोयमा! एवं बुच्चइ--अत्थेगइया ण जाणंति, ण पासंति, आहारेंति, अत्थेगाइया जाणंति 3 / [8-4 प्र.] भगवन् ! आप यह किस कारण से कहते हैं कि कई मनुष्य जानते-देखते और ग्रहण करते हैं, जब कि कई मनुष्य जानते-देखते नहीं, किन्तु ग्रहण करते हैं ? [64 उ.] गौतम ! मनुष्य दो प्रकार के कहे गए हैं। यथा- संज्ञीभूत और असंज्ञीभूत / उनमें जो असंज्ञीभूत हैं, वे (उन पुद्गलों को) नहीं जानते-देखते, किन्तु ग्रहण करते हैं। जो संज्ञीभूत मनुष्य हैं, वे दो प्रकार के हैं। यथा--उपयोगयुक्त और उपयोगरहित / उनमें जो उपयोगरहित हैं वे उन पुद्गलों को नहीं जानते-देखते, किन्तु ग्रहण करते हैं। मगर जो उपयोगयुक्त हैं, वे जानते-देखते हैं, और ग्रहण करते हैं। इस कारण से, हे गौतम ! ऐसा कहा गया है कि कई मनुष्य नहीं जानतेदेखते, किन्तु आहाररूप से ग्रहण करते हैं, तथा कई जानते-देखते हैं और ग्रहण करते हैं।' 9. [5] वाणमंतर-जोइसिया जहा गेरइया / [9-5] वाणव्यन्तर और ज्योतिष्कदेवों का कथन नै रयिकों के समान जानना चाहिए / 9. [6] बेमाणिया णं भंते ! ते णिज्जरा पोग्गले कि जाति 3 ? गोयमा ! जहा मणुस्सा, णवरं वेमाणिया दुविहा प० तं०--माइमिच्छदिदि-उववण्णगा य अमाइसम्मदिट्ठी-उववण्णगा य / तत्थ णं जे ते माइमिच्छदिद्वि-उववण्णगा ते णं ण जाणंति, ण पासंति, पाहारेति / तत्थ णं जे ते अमाइ-सम्मदिट्ठी-उववण्णगा ते दुविहा 50 तं०--अणंतरोववष्णगा य, परंपरोक्वण्णगा य / तत्थ गंजे ते अणंतरोववण्णगा, ते णं ण जाणंति, ण पासंति, पाहाति / तत्थ णं जे ते परंपरोक्वण्णगा ते दुविहा प० तं०--पज्जत्तगा य अपज्जत्तगाय / तत्थ णं जे ते अपज्जत्तगा ते णं ण जाणंति, ण पासंति, आहारेति / तत्थ णं जे ते पज्जत्तगा ते दुविहा ५००--उवउत्ता य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org