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________________ बीओ उद्दसओ : 'विसाह' द्वितीय उद्देशक : 'विशाख' विशाखा नगरी में भगवान् का समवसरण 1. तेणं कालेणं तेणं समयेणं विसाहा नाम नगरी होत्था। वनभो। बहुपुत्तिए चेतिए / वण्णओ / सामी समोसढे जाव पज्जुवासति / [1] उस काल एवं उस समय में विशाखा नाम की नगरी थी। उसका वर्णन प्रौपपातिकसूत्र के नगरीवर्णन के समान जानना चाहिए / वहाँ बहुपुत्रिक नामक चैत्य ( उद्यान ) था / उसका वर्णन भी प्रौपपातिक सूत्र से जान लेना चाहिए। एक बार वहाँ श्रमण भगवान् महावीर स्वामी का पदार्पण हुआ, यावत् परिषद् पर्युपासना करने लगी। विवेचन-विशाखा नगरी : विशाखा नगरी आज कहाँ है ? यह निश्चित रूप से कहा नहीं जा सकता / अाज अान्ध्रप्रदेश में समुद्रतट पर विशाखापट्टनम्' नगर बसा हुआ है / दूसरा 'घसाढ' है, जो उत्तर विहार में मुजफ्फरपुर के निकट है। विशाखानगरी में भगवन् का पदार्पण हुआ था / वहीं इस उद्देशक में वर्णित शक्रेन्द्र के पूर्वभव के सम्बन्ध में संवाद हुआ था। शकेन्द्र का भगवान के सानिध्य में प्रागमन और नाट्य प्रदर्शित करके पुनः प्रतिगमन 2. तेणं कालेणं तेणं समएणं सक्के देविदे देवराया वज्जपाणी पुरंदरे एवं जहा सोलसमसए बितिए उद्देसए (स० 16 उ० 2 सु० 8) तहेव दिध्वेण जाणविमाणेण आगतो; नवरं एत्थ आभियोगा वि अस्थि, जाव बत्तीसतिविहं नविहिं उवदंसेति, उप० 2 जाव पडिगते। [2] उस काल और उस समय में देवेन्द्र देवराज शक्र, वज्रपाणि, पुरन्दर इत्यादि सोलहवें शतक के द्वितीय उद्देशक (सू. 8) में शकेन्द्र का जैसा वर्णन है, उस प्रकार से यावत् वह दिव्य यानविमान में बैठ कर वहाँ पाया / विशेष बात यह थी, यहाँ आभियोगिक देव भी साथ थे; यावत् शकेन्द्र ने बत्तीस प्रकार की नाट्य-विधि प्रदर्शित की। तत्पश्चात् वह जिस दिशा से आया था, उसी दिशा में लौट गया / विवेचन-सोलहवें शतक के द्वितीय उद्देशक का अतिदेश-सोलहवें शतक के द्वितीय उद्देशक स. 8 में शकेन्द्र का वर्णन है। वहाँ शकेन्द्र जिस तैयारी के साथ, दलबल सहित सजधज कर श्रमण भगवान महावीर के समीप आया था, उसी प्रकार से वह यहाँ (विशाखा में भगवान् के समीप) आया / अन्तर इतना ही है कि वहाँ वह 'पाभियोगिक देवों को साथ लेकर नहीं पाया था, यहाँ याभियोगिक देव भी उसके साथ आए थे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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