________________ [665 अठारहवां शतक : उद्देशक 1] 92. अकसायी जीवपए सिद्ध य नो चरिमो, अचरिमो। मणुस्सपदे सिय चरिमो, सिय अचरिमो। _[12] अकषायी, जीवपद और सिद्धपद में, चरम नहीं, अचरम हैं। मनुष्यपद में, कदाचित् चरम और कदाचित् अचरम होता है। 93. [1] गाणी जहा सम्मट्टिी (सु० 84) सव्वत्य / [63-1] ज्ञानी सर्वत्र (सू. 84 में उल्लिखित) सम्यग्दृष्टि के समान है। [2] आभिणिबोहियनाणी जाव मणपज्जवनाणी जहा आहारओ (सू०७२), जस्स जं अत्थि / [63-2] प्राभिनिबोधिक ज्ञानी यावत् मनःपर्यवज्ञानी (सू. 72 में उल्लिखित) आहारक के समान हैं / विशेष यह कि जिसके जो ज्ञान हो, वह कहना चाहिए / [3] केवलनाणी जहा नोसण्णी-नोअसण्णी (सु० 81) / [63-3] केवलज्ञानी (सू. 81 के अनुसार) नोसंज्ञी-नोप्रसंज्ञी के समान है / 94. अण्णाणी जाव विभंगनाणी जहा प्राहारओ (सु० 72) / [14] अज्ञानी, यावत् विभंगज्ञानी, (सू. 72 में उल्लिखित) आहारक के समान हैं / 65. सजोगी जाव कायजोगी जहा आहारओ (सु०७२), जस्स जो जोगो प्रस्थि / [15] सयोगी, यावत् काययोगी, (सू. 72 के अनुसार) पाहारक के समान हैं। विशेषजिसके जो योग हो, वह कहना चाहिए / 96. अजोगी जहा नोसण्णी-नोअसण्णी (सु० 81) / [96] अयोगी, (सू. 81 में उल्लिखित) नोसंज्ञो-नोप्रसंज्ञो के समान हैं। 97. सागारोवउत्तो अणागारोवउत्तो य जहा अणाहारओ (सु०७३-७४) / [17] साकारोपयोगी और अनाकारोपयोगी (सू. 73-74 में उल्लिखित) अनाहारक के समान हैं। 68. सवेदनो जाव नपुंसगवेदश्रो जहा आहारओ (सु. 72) / [98] सवेदक, यावत् नपुंसकवेदक (सू. 72 में उल्लिखित) पाहारक के समान हैं। 99. अवेदओ जहा अकसायो (सु० 92) / [96] प्रवेदक (सू. 62 में उल्लिखित) अकषायी के समान हैं। 100, ससरीरो नाव कम्मगसरीरी जहा आहारओ (सु० 72), नवरं जस्स जं अस्थि / [100] सशरीरी यावत् कार्मणशरीरी, (सू. 72 में उल्लिखित) आहारक के समान हैं / विशेष यह है कि जिसके जो शरीर हो, वह कहना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org