________________ अठारहवां शतक : उद्देशक 1] 66. नेरतिया चरिमा वि, अचरिमा वि। [66] नैरयिकजीव, नैरयिकभाव से, चरम भी हैं, अचरम भी हैं / 70. एवं जाव वेमाणिया। [70] इसी प्रकार यावत् वैमानिक तक समझना चाहिए / 71. सिद्धा जहा जीवा। [71] सिद्धों का कथन जीवों के समान है / 72. आहारए सव्वस्थ एगत्तेणं सिय चरिमे, सिय अचरिमे / पुहत्तेणं चरिमा वि, अचरिमा वि। [72] आहारकजीव सर्वत्र एकवचन से कदाचित् चरम और कदाचित् अचरम होता है / बहुवचन से पाहारक चरम भी होते हैं और अचरम भी। 73. प्रणाहारओ जीवो सिद्धो य; एगत्तेण वि पुहत्तेण वि नो चरिमा, अचरिमा। [73] अनाहारक जीव और सिद्ध, एकवचन और बहुवचन से भी चरम नहीं है, अचरम हैं। 74. सेसट्ठाणेसु एगत्त-पुहत्तेणं जहा प्राहारओ (सु० 72) / [74] शेष (नरयिक आदि) स्थानों में (अनाहारक) एकवचन और बहुवचन से, (सू. 72 में उल्लिखित) अाहारक जीव के समान (कदाचित् चरम और कदाचित् अचरम) जानना चाहिए। 75. भवसिद्धीग्रो जीवपदे एगत्त-पुहत्तेणं चरिमे, नो अचरिमे। [75] भवसिद्धकजीव, जीवपद में, एकवचन और बहुवचन से चरम हैं, अचरम नहीं / 76. सेसटाणेसु जहा पाहारओ। [76] शेष स्थानों में आहारक के समान हैं / 77. अभवसिद्धीनो सम्वत्थ एगल-पुहत्तेणं नो चरिमे, अचरिमे / [77] अभवसिद्धिक सर्वत्र एकवचन और बहुवचन से, चरम नहीं, अचरम हैं / 78. नोभवसिद्धीय-नोग्रभवसिद्धीयजीवा सिद्धा य एगत्त-पुहत्तेणं जहा अभवसिद्धीओ। [78] नो-भव सिद्धिक–नो अभवसिद्धिक जीव और सिद्ध, एक वचन और बहुवचन से अभवसिद्धिक के समान हैं। 79. सण्णी जहा प्राहारओ (सु०७२)। [7] संज्ञी जीव (सू, 72 में उल्लिखित) याहारक जीव के समान हैं / 80. एवं असण्णी वि। [80] इसी प्रकार असंज्ञी भी (आहारक के समान हैं।) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org