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________________ 632] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र 2. पुढविकाइए गं भंते ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए जाव समोहए, समोहग्नित्ता जे भविए ईसाणे कप्पे पुढवि०॥ एवं चेव ईसाणे वि। {2 प्र.] भगवन् ! जो पृथ्वीकायिक जीव, इस रत्नप्रभा पृथ्वी में मरण-समुद्घात करके ईशानकल्प में पृथ्वीकाधिक रूप में उत्पन्न होने के योग्य हैं, वे पहले....? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न / [2 उ.] गौतम ! पूर्ववत् (सौधर्म के समान) ईशानकल्प में पृथ्वीकायिक रूप से उत्पन्न होने योग्य जीवों के विषय में जानना चाहिए। 3. एवं जाव प्रच्चुए। [3] इसी प्रकार यावत् अच्युतकल्प के पृथ्वीकायिक के विषय में समझना चाहिए। 4. गैविज्जविमाणे अणुत्तरविमाणे ईसिपम्भाराए य एवं चेव / [4] ग्रैवेयक विमान, अनुत्तर विमान और ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी के विषय में भी इसी प्रकार जानना चाहिए। . 5. पुढविकाइए णं भंते ! सक्करप्पभाए पुढवीए समोहते, समोहन्नित्ता जे भविए सोहम्मे कप्पे पुढवि० / एवं जहा रयणप्पभाए पुढविकाइओ उववातिओ एवं सक्करप्यमापुढविकाइओ वि उववाएयव्यो जाव ईसिपमाराए। [5 प्र.] भगवन् ! जो पृथ्वी कायिक जीव, शर्कराप्रभा पृथ्वी में भरण-समुद्घात करके सौधर्मकल्प में पृथ्वीकायिक रूप में उत्पन्न होने योग्य है ; इत्यादि प्रश्न पूर्ववत् ? [5 उ.] जिस प्रकार रत्नप्रभा पृथ्वी के पृथ्वीकायिक जीवों का उत्पाद कहा, उसी प्रकार शर्कराप्रभा पृथ्वीकायिक जीवों का उत्पाद यावत् ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी तक जानना चाहिए। 6. एवं जहा रयणप्पभाए वत्तव्वता भणिया एवं जाव अहेसत्तमाए समोहतो ईसिपम्भाराए उपवातेयन्यो / सेसं तं चेव / सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति / / सत्तरसमे सए : छट्ठो उद्देसओ समत्तो // 17-6 // [6] जिस प्रकार रत्नप्रभा के पृथ्वीकायिक जीवों की वक्तव्यता कही, उसी प्रकार यावत् अधःसप्तम पृथ्वी में मरण-समुद्घात से समवहत जीव का ईषत्प्रारभारा पृथ्वी तक उत्पाद जानना चाहिए। भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है, यों कह कर (गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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