________________ सोलहवां शतक : उद्देशक 6] विवेचन--मरण-समुद्घात और पुद्गल-ग्रहण-जब जीव मरण-समुद्धात करके, अपने शरीर को सर्वथा छोड़कर, गेंद के समान एक साथ सभी आत्म प्रदेशों के साथ उत्पत्ति-स्थान में जाता है, तब पहले उत्पन्न होता है, पीछे पुद्गल ग्रहण करता है। (ग्राहार करता) है, किन्तु जब मरण. समुद्रघात करके ईलिका गति से उत्पत्ति-स्थान में जाता है, तब पहले पाहार करता है और पीछे उत्पन्न होता है।' कठिनशब्दार्थ-समोहए-समवहत--जिसने (मारणान्तिक) समुद्घात किया है। उबवज्जित्ता--उत्पाद क्षेत्र में जा कर / संपाउणेज्ज--पुदगल ग्रहण करता है / / / सत्तरहवां शतक : छठा उद्देशक समाप्त // - -.. - .-.-. 1. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 730 2. वही, अ. वृत्ति, पत्र 730 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org