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________________ छट्ठो उद्देसओ : 'पुढवी' छठा उद्देशक : पृथ्वीकायिक (-मरणसमुद्धात) मरण समुद्घात करके सौधर्मकल्प में उत्पन्न होने योग्य पृथ्वी कायिक जीवों की उत्पत्ति एवं पुद्गलग्रहण में पहले क्या, पीछे क्या ? 1. [1] पुढधिकाइए णं भले ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए समोहए, समोहणित्ता जे भविए सोहम्मे कप्पे पुढविकाइयत्ताए उवज्जित्तए से गं भंते ! कि पुधि उपज्जित्ता पच्छा संपाउणेज्जा, पुक्ति वा संपाउणित्ता पच्छा उववज्जेज्जा ?. गोयमा ! पुग्वि वा उवज्जित्ता पच्छा संपाउणेज्जा, पुग्विं वा संपाउणित्ता पच्छा उववज्जेज्जा। 1-1 प्र.] भगवन् ! जो पृथ्वोकायिक जीव, इस रत्नप्रभा पृथ्वी में मरण-समुद्घात करके सौधर्मकल्प में पृथ्वीकायिक रूप से उत्पन्न होने के योग्य हैं, वे पहले उत्पन्न होते हैं और पीछे आहार (पुद्गल) ग्रहण करते हैं. अथवा पहले प्रहार ग्रहण करते हैं और पीछे उत्पन्न होते हैं ? [1-1 उ.] गौतम ! वे पहले उत्पन्न होते हैं और पीछे पुद्गल ग्रहण करते हैं; अथवा पहले वे पुद्गल ग्रहण करते हैं और पीछे उत्पन्न होते हैं / [2] से केण?णं जाव पच्छा उववज्जेज्जा ? गोयमा ! पुढधिकाइयाणं तओ समुग्धाया पन्नत्ता, तं जहा-वेयणासमुग्धाए कसायसमुग्धाए मारणंतियसमुग्धाए / मारणंतियसमुग्घाएणं समोहण्णमाणे देसेण वा समोहण्णति सब्वेण वा समोहमति, देसेणं समोहनमाणे पुन्वि संपाणित्ता पच्छा उवज्जिज्जा, सम्वेणं समोहणमाणे पुचि उववज्जेत्ता पच्छा संपाउणेज्जा, से तेण?णं जाव उवज्जिज्जा। [1-2 प्र.] भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा गया कि वे पहले...'यावत् पीछे उत्पन्न होते हैं ? [1-2 उ.] गौतम ! पृथ्वीकायिक जोवों में तीन समुद्घात कहे गए हैं। यथा-वेदनासमुदघात, कषायसमुदघात और मारणान्तिकसमुदघात / जब पृथ्वीकायिक जीव, मारणान्तिकसमुद्घात करता है, तब वह 'देश से भी समुद्घात करता है और सर्व से भो समुद्घात करता है। जब देश से समुद्घात करता है, तब पहले पुद्गल ग्रहण करता है और पीछे उत्पन्न होता है। जब सर्व से समुद्घात करता है, तब पहले उत्पन्न होता है और पीछे पुद्गल ग्रहण करता है। इस कारण पहले......"यावत् पीछे उत्पन्न होता है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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