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________________ सत्तरहवां शतक : उद्देशक 3] [619 [2 प्र.] भगवन् ! एजना कितने प्रकार की कही गई है ? [2 उ.] गौतम ! एजना पांच प्रकार की कही गई है। यथा---(१) द्रव्य-एजना, (2) क्षेत्रएजना, (3) काल-एजना, (4) भव-एजना और (5) भाव-एजना / विवेचन--एजना : स्वरूप, प्रकार और अर्थ-योगों द्वारा प्रात्मप्रदेशों का अथवा पुद्गल-द्रव्यों का चलना (कांपना) 'एजना' कहलाती है। एजना के पांच भेद हैं। द्रव्यएजना--मनुष्यादि जीवद्रव्यों का, अथवा मनुष्यादि जीव-सम्पृक्त पुद्गल द्रव्यों का कम्पन / क्षेत्रएजना-मनुष्यादि-क्षेत्र में रहे हुए जीवों का कम्पन / काल-एजना-मनुष्यादि-काल में रहे हुए जीवों का कम्पन / भाव-एजनाप्रौदयिकादि भावों में रहे हुए नारकादि जीवों का, अथवा तद्गत पुद्गल द्रव्यों का कम्पन / भवएजना--मनुष्यादि भव में रहे हुए जीव का कम्पन / ' द्रव्यैजनादि पांच एजनाओं को चारों गतियों की दृष्टि से प्ररूपणा 3. दवेयणा णं भंते ! कतिविधा पन्नत्ता? गोयमा ! चउव्विहा पन्नत्ता, तं जहानेरतियदब्वेयणा तिरिक्खजोणियदवेयणा मणुस्सदव्वेयणा देवदव्येयणा। [3 प्र.] भगवन् ! द्रव्य-एजना कितने प्रकार की कही गई है ? 63 उ.] गौतम ! द्रव्य-एजना चार प्रकार की कही गई है / यथा नैरयिकद्रव्यैजना, तिर्यग्योनिकद्रव्येजना, मनुष्यद्रव्यैजना और देवद्रव्यैजना / / 4. से केपट्टणं भंते ! एवं बुच्चति नेरतियदम्वेयणा, नेरइयदम्वेयणा? गोयमा ! जंणं नेरतिया नेरतियदन्वे वट्टिसुवा, वट्ट ति वा, वट्टिस्संति वा तेणं तत्थ नेरतिया नेरतियदन्वे वट्टमाणा नेरतियदन्वेयणं एइंसु वा, एयंति वा, एइस्संति वा, से तेण?णं जाव दध्वेयणा / [4 प्र.] भगवन् ! नैरयिक-द्रव्यैजना को नरयिक-द्रव्यैजना क्यों कहा जाता है ? [4 उ.] गौतम ! क्योंकि नैयिक जीव, नैयिकद्रव्य में वर्तित (वर्तमान) थे, वर्तते हैं और वत्तेंगे; इस कारण वहाँ नैरयिक जीवों ने, नैरयिकद्रव्य में वर्तते हुए, नरयिकद्रव्य को एजना पहले भी की थी, अब भी करते हैं और भविष्य में भी करेंगे, इसी कारण से वह नैरयिकद्रव्यैजना कहलाती है। 5. से केण?णं भंते ! एवं वुच्चति तिरिक्खजोणियदम्वेयणा० ? एवं चेव, नवरं 'तिरिक्खजोणियदवे' भागियन्वं / सेसं तं चेव / [5 प्र.] भगवन् ! तिर्यग्योनिकद्रव्य-एजना तिर्यग्योनिकद्रव्य-एजना क्यों कहलाती है ? [5 उ. गौतम ! पूर्वोक्त प्रकार से जानना चाहिए। विशेष यह है कि 'नरयिकद्रव्य' के स्थान पर 'तिर्यग्योनिक द्रव्य' कहना चाहिए / शेष सभी कथन पूर्ववत् / 1. (क) भगवती. (हिन्दीविवेचन) भा. 5, पृ. 2618 (ख) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 726 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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