________________ 620] [भ्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र 6. एवं जाव देवव्वेयणा / [6] इसी प्रकार (मनुष्यद्रव्य-एजना) यावत् देवद्रव्य-एजना के विषय में जानना चाहिए / 7. खेतयणा गं भंते ! कतिविहा पन्नत्ता ? गोयमा ! चउब्विहा पन्नत्ता, तं जहानेरतियखेत्तेयणा जाव देवखेतेयणा ? [7] भगवन् ! क्षेत्र-एजना कितने प्रकार की कही गई है ? [7 उ.] गौतम ! वह चार प्रकार की कही गई है / यथा-नरयिकक्षेत्र-एजना (से लेकर) यावत् देवक्षेत्रएजना। 8. से केणढणं भंते ! एवं वुच्चति–नेरइयखेत्तेयणा, नेरइयखेत्तयणा ? एवं चेव, नवरं नेरतियखेत्तेयणा भाणितम्या / [- प्र.] भगवन् ! इसे नैरयिकक्षेत्र एजना क्यों कहा जाता है ? [8 उ.] गौतम ! नैरयिकद्रव्यएजना के समान सारा कथन करना चाहिए। विशेष यह है कि नरयिकद्रव्य-एजना के स्थान पर यहाँ नैरयिकक्षेत्र-एजना कहना चाहिए / 9. एवं जाय देवखेत्तयणा / [9] इसी प्रकार यावत् देव-क्षेत्र-एजना तक पूर्ववत् कहना चाहिए / 10. एवं कालेयणा वि / एवं भवेयणा वि, जाव देवभावेयणा / [10] इसी प्रकार काल-एजना, भव-एजना और भाव-एजना के विषय में समझ लेना चाहिए / और इसी प्रकार नै रयिक कालादि-एजना से लेकर देव-भाव-एजना तक जानना चाहिए / विवेचन- द्रव्यादि एजना : चतुर्विध गतियों की अपेक्षा से-~-नरपिक द्रव्य एजना इसलिए कहते हैं, कि नरयिकजीव नैयिकशरीर में रहते हुए उस शरीर से एजना (हलचल या कम्पन) करते हैं, की है, और भविष्य में करेंगे। इसी प्रकार तिर्यञ्च, मनुष्य और देवसम्बन्धी द्रव्य-एजना भी समझ लेनी चाहिए / और इसी प्रकार क्षेत्रादि-एजना के विषय में समझ लेना चाहिए।' ____ कठिन शब्दों का भावार्थ--वट्टिसु-वर्त्तते थे / चलना और उसके भेद-प्रभेद-निरूपण 11. कतिविहा शं भंते ! चलणा पन्नत्ता ? गोयमा ! तिविहा चलणा पन्नत्ता, तं जहा सरीरचलणा इंदियचलणा जोगचलणा / [11 प्र.] भगवन् ! चलना कितने प्रकार की है ? [11 उ.] गौतम ! चलना तीन प्रकार की है, यथा-शरीरचलना, इन्द्रियचलना और योगचलना। 1. भगवती. (हिन्दीविवेचन) भा. 5, पृ. 2617 2. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 726 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org