________________ तइओ उद्देसओ : 'सेलेसी' तृतीय उद्देशक : शैलेशी (अनगार की निष्कम्पता आदि) शैलेशी अवस्थापन्न अनगार में परप्रयोग के विना एजनादिनिषेध 1, सेलेसि पडिवन्नए णं भंते ! अणगारे सदा समियं एयति वेयति जाव तं तं भावं परिणमति? नो इण? सम?, नऽनत्थेगेणं परप्पयोगेणं / [1 प्र.] भगवन् ! शैलेशी-अवस्था-प्राप्त अनगार क्या सदा निरन्तर कांपता है, विशेषरूप से कांपता है, यावत् उन-उन भावों (परिणमनों) में परिणमता है ? [1 उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ (शक्य) नहीं है / सिवाय एक पर प्रयोग के (शैलेशी-अवस्था में एजनादि सम्भव नहीं।) विवेचन - शैलेशी अवस्था और एजनादि-शैलेश अर्थात् पर्वतराज सुमेरु, उसकी तरह निष्कम्प-निश्चल-अडोल अवस्था को शैलेशी-अवस्था कहते हैं। शैलेशी अवस्था में मन, वचन और काया के योगों का सर्वथा निरोध हो जाता है, इसलिए शैलेशी-अवस्थापन्न अनगार मन-वचन-काया से सर्वथा निष्कम्प रहता है। किन्तु परप्रयोग से अर्थात् कोई शैलेशी-प्रवस्थापन्न अनगार की काया को कम्पित करे तो कम्पन सम्भव है / कुछ व्याख्याकार इसकी व्याख्या यों करते हैं कि "शैलेशी अवस्था में कम्पन होता ही नहीं अर्थात् शैलेशी अवस्था में प्रात्मा अत्यन्त स्थिर रहती है, कम्पित नहीं होती / उस अवस्था में परप्रयोग नहीं होता और परप्रयोग के बिना कम्पन नहीं होता।" तत्त्वं के वलिगम्यम् / ' कठिनशब्दार्थ-समियं : दो अर्थ----(१) सन्तत-निरन्तर, अथवा (2) सम्यक् गत-व्यवस्थित या प्रमाणोपेत / एयति–एजना करता है, कंपित होता है। वेयति--विशेष रूप से कंपित होता है।' एजना के पांच भेद 2. कतिविधा णं भंते ! एयणा पन्नता? गोयमा ! पंचविहा एयणा पनत्ता, तं जहा--दव्वेपणा खेत्तयणा कालेयणा भवेयणा भावेयणा / 1. (क) पाइअसहमहण्णवी में सेलेसी शब्द प्र. 931 (ख) नन्नत्थेगेणं परप्पओगेणं योऽयं निषेधः, सोऽन्य कस्मात परप्रयोगात् / एजनादिकारणेष मध्ये परप्रयोगेण केन शैलेश्यामेजनादि भवति न कारणान्तरेणेति भावः / -- भगवती. अ. बत्ति, पत्र 726 (ग) भगवती, (हिन्दी विवेचन) भा. 5, पृ. 2617 2. (क) 'पाइ-सह-महष्णवो' में-समियं, समिअं शब्द पृ. 871 (ख) भगवती, (हिन्दीविवेचन) भा. 5, पृ. 2616 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org