________________ प्रथम शतक : उद्देशक-९ ] | 149 21-1] उस काल (भगवान् पार्श्वनाथ के निर्वाण के लगभग 250 वर्ष पश्चात्) और उस समय (भगवान महावीर के शासनकाल) में पाश्र्वापत्यीय (पाश्र्वनाथ की परम्परा के शिष्यानुशिष्य) कालास्यवेषिपुत्र नामक अनगार जहाँ (भगवान् महावीर के) स्थविर (श्रुतवृद्ध शिष्य) भगवान् विराजमान थे, वहाँ गए। उनके पास आकर स्थविर भगवन्तों से उन्होंने इस प्रकार कहा- "हे स्थविरो! आप सामायिक को नहीं जानते, सामायिक के अर्थ को नहीं जानते; आप प्रत्याख्यान को नहीं जानते और प्रत्याख्यान के अर्थ को नहीं जानते; आप संयम को नहीं जानते और संयम के अर्थ को नहीं जानते ; आप संवर को नहीं जानते, संवर के अर्थ को नहीं जानते; हे स्थविरो! आप विवेक को नहीं जानते और विवेक के अर्थ को नहीं जानते हैं, तथा आप व्युत्सर्ग को नहीं जानते और न व्युत्सर्ग के अर्थ को जानते हैं।" [2] तए णं ते थैरा भगवंतो कालासवेसिययुत्तं धणगारं एवं क्यासी–जाणामो गं अज्जो ! सामाइय, जाणामो गं प्रज्जो ! सामाइयस्स अटुंजाव जाणामो णं प्रज्जो ! विउस्सग्गस्स अट्ठ। [21-2] तब उन स्थविर भगवन्तों ने कालास्यवेषिपुत्र अनगार से इस प्रकार कहा- "हे आर्य! हम सामायिक को जानते हैं, सामायिक के अर्थ को भी जानते हैं, यावत् हम व्युत्सर्ग को जानते हैं और व्युत्सर्ग के अर्थ को भी जानते हैं। _ [3] तए णं से कालासवेसियपुत्ते अणगारे ते थेरे भगवंते एवं बयासी-जति ण प्रज्जो ! तुन्ने जाणह सामाइयं, जाणह सामाइयस्स अट्ठजाव जाणह विउस्सग्गस्स अट्ठ कि भे अज्जो ! सामाइए ? किं भे अज्जो! सामाइयस्स अट्ठ ? जाव कि भे विउस्सगस्स अट्ठ ? [21-3 प्र.] उसके पश्चात् कालास्यवेषिपुत्र अनगार ने उन' स्थविर भगवन्तों से इस प्रकार कहा-हे आर्यो ! यदि आप सामायिक को (जानते हैं) और सामायिक के अर्थ को जानते हैं, यावत्व्युत्सर्ग को एवं व्युत्सर्ग के अर्थ को जानते हैं, तो बतलाइये कि (आपके मतानुसार) सामायिक क्या है और सामायिक का अर्थ क्या है ? यावत्........न्युत्सर्ग क्या है और व्युत्सर्ग का अर्थ क्या है ? [4] तए णं ते थेरा भगवंतो कालासवेसियपुत्तं अणगार एवं वयासी--प्राया णे अज्जो ! सामाइए, प्राया णे अज्जो ! सामाइयस्स अट्ठ जाव विउस्सग्गरस अट्ठ। |21-4 उ. तब उन स्थविर भगवन्तों ने इस प्रकार कहा कि-हे आर्य ! हमारी आत्मा सामायिक है, हमारी आत्मा सामायिक का अर्थ है ; याव - हमारी आत्मा व्युत्सर्ग है, हमारी आत्मा ही व्युत्सर्ग का अर्थ है। [5] तए णं से कालासवेसियपुत्ते अणगारे थेरे भगवते एवं वयासी-जति में प्रज्जो ! आया सामाइए, प्राया सामाइयस्स अट्ठ एवं जाव पाया .विउस्सम्गस्स अट्ठ, अवहट्ट कोह-माणमाया-लोभे किमट्ठ अज्जो ! गरहह ? कालास ! संजमट्टयाए। [21-5 प्र.] इस पर कालास्यवेषिपुत्र, अनगार ने उन स्थविर भगवन्तों से इस प्रकार पूछा'हे आर्यो ! यदि आत्मा ही सामायिक है, अात्मा ही सामायिक का अर्थ है, और इसी प्रकार यावत् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org