________________ 612] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [11 प्र.] भगवन् ! क्या जीव बाल हैं, पण्डित हैं अथवा बालपण्डित हैं ? [11 उ.] गौतम ! जीव बाल भी हैं, पण्डित भी हैं और बाल-पण्डित भी हैं। 12. नेरइया गं० पुच्छा। गोयमा! नेरइया बाला, नो पंडिया, नो बालपंडिया। [12 प्र.] भगवन् ! क्या नैरयिक बाल हैं, पण्डित हैं अथवा बालपण्डित हैं ? [12 उ.] गौतम ! नरयिक बाल हैं, वे पण्डित नहीं हैं और न बाल-पण्डित हैं / 13. एवं जाध चरिंदियाणं / [13] इसी प्रकार (दण्डकक्रम से) यावत् चतुरिन्द्रिय जीवों तक (कहना चाहिए / ) 14. पंचिदियतिरिक्ख० पुच्छा। गोयमा ! पंचिंदियतिरिक्खजोणिया बाला, नो पंडिया, बालयंडिया वि। [14 प्र.] भगवन् ! क्या पंचेन्द्रिय तियंग्योनिक जीव बाल हैं ? (इत्यादि पूर्ववत्) प्रश्न / [14 उ.] गौतम ! पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक बाल हैं और बाल-पण्डित भी हैं, किन्तु पण्डित नहीं हैं। 15. मणुस्सा जहा जीवा। [15] मनुष्य (सामान्य) जीवों के समान हैं। 16. वाणमंतर-जोतिसिय-वेमाणिया जहा नेरतिया / [16] वाण-व्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक (इन तीनों का पालापक) नै रयिकों के समान (कहना चाहिए !) विवेचन-प्रस्तुत सूत्रों (सू. 10 से 16 तक) में अन्यतीथिकों के मत के निराकरणपूर्वक श्रमणादि में, सामान्य जीवों में तथा नरयिकों से लेकर वैमानिकों तक चौबीस दण्डकों में बाल, पण्डित और बाल-पण्डित की प्ररूपणा की गई है। अन्यतीथिक मत कहाँ तक यथार्थ-प्रयथार्थ ? --'श्रमण सर्वविरति चारित्र वाले होने के कारण 'पण्डित' हैं और श्रमगोपासक देविति चारित्र वाले होने के कारण बाल-पण्डित हैं; यहाँ तक तो अन्यतीथिकों का मत ठीक है, किन्तु वे कहते हैं कि सभी जीवों के वध से विरति वाला होते हए भी जिसने सापराधी आदि या पृथ्वीकायादि में से एक भी जीव का वध खला रक्खा है, अर्थात सब जीवों के वध का त्याग करके भी किसी एक जीव के वध का त्याग नहीं किया है, उसे भी 'एकान्त बाल' कहना चाहिए / श्रमण भगवान महावीर इस मत का निराकरण करते हुए कहते हैं कि अत्यतीथिकों की यह मान्यता मिथ्या है। जिस जीव ने आंशिक रूप में भी प्राणी के वध की 1. वियाह पणत्तिसत्तं, भा. 2, (मूलपाट-टिप्पणयुक्त) पृ. 778-779 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org