________________ सत्तरसमं सयं : सत्तरहवां शतक सत्तरहवें शतक का मंगलाचरण 1. नमो सुयदेवयाए भगवतीए / [1] भगवती श्रुतदेवता को नमस्कार हो। विवेचन-श्रुतदेवता का स्वरूप-अावश्यक चूणि में श्रुतदेवता का स्वरूप इस प्रकार है-- जिससे समग्र श्रुतसमुद्र (या जिनप्रवचन) अधिष्ठित है, जो श्रुत की अधिष्ठात्री देवी है, जिसकी कृपा से शास्त्रज्ञान पढ़ा-सीखा है, उस भगवती जिनवाणी या सरस्वती को श्रुतदेवता कहते हैं :' उद्देशकों के नामों को प्ररूपणा 2. कुजर 1 संजय 2 सेलेसि 3 किरिय 4 ईसाण 5 पुढवि 6-7 दग 8-9 वाऊ 10-11 / एगिदिय 12 नाग 13 सुवण्ण 14 विज्ज 15 बाय 16 ऽग्नि 17 सत्तरसे // 1 // [2] (संग्रहणो-गाथार्थ) (सत्तरहवें शतक में) सत्तरह उद्देशक (कहे गये) हैं / (उनके नाम इस प्रकार हैं-)-(१) कुजर, (2) संयत, (3) शैलेशी, (4) क्रिया, (5) ईशान, (6-7) पृथ्त्री, (8-9) उदक, (10-11) वायु, (12) एकेन्द्रिय, (13) नाग, (14) सुवर्ण, (15) विद्युत्, (16) वायुकुमार, और (17) अग्निकुमार। विवेचन-उद्देशकों के नामों के अनुसार प्रतिपाद्य विषय-(१) प्रथम उद्देशक का नाम कुंजर है / कुजर से प्राशय है-श्रेणिक राजा के पुत्र कुणिक राजा के उदायी एवं भूतानन्द नामक हस्तिराज। इसमें इन हस्तिराजों के विषय में प्रतिपादन है--(२) संयत—द्वितीय उद्देशक में संयत आदि के विषय का प्रतिपादन है / (3) शैलेशी-तीसरे उद्देशक में शैलेशी (योगों से रहित निष्कम्प) अवस्था प्राप्त अनगार विषयक कथन है। (4) चौथे किया उद्देशक में क्रिया विषयक वर्णन है / (5) पांचवें ईशानउद्देशक में, ईशानेन्द्र की सुधर्मा-सभा आदि का कथन है। (6-7) छठे-सातवें उद्देशक में पृथ्वीकायविषयक वर्णन है। (-8) पाठवें-नौवें में अप्काय-विषयक वर्णन है। (10-11) दसवें-ग्यारहवें उद्देशक में वायुकाय-विषयक वर्णन है। (12) बारहवें उद्देशक में एकेन्द्रिय जीव-स्वरूप का प्रतिपादन है। (13-17) तेरहवें से लेकर सतरहवें उद्देशक में नागकुमार, सुवर्णकुमार, विद्युत्कुमार, वायुकुमार और अग्निकुमार से सम्बन्धित वक्तव्यता है / इस प्रकार सत्तरहवें शतक में सत्तरह उद्देशक कहे गए हैं। 1. पावश्यक चूणि अ. 4 2. भगवती. अ. वत्ति, पत्र 729 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org