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________________ [599 सत्तरहवां शतक : प्राथमिक अधोलोकस्थ पृथ्वी कायादि में पहले उत्पन्न होते हैं, पीछे पुद्गल (माहार) ग्रहण करते हैं ? अथवा पहल आहार (पुद्गल) ग्रहण करते हैं, पीछे उत्पन्न होते हैं ? इसी प्रकार सौधर्म कल्पादि में मरण-समुदघात करके रत्नप्रभादि सातों नरकपृथ्वियों में उत्पन्न होने योग्य ऊर्बलोकस्थ पृथ्वीकायादि के भी उत्पन्न होने और आहार (पुद्गल) ग्रहण करने की पहले-पीछे की चर्चा की गई है। * बारहवें उद्देशक में एकेन्द्रियजीवों में पाहार, श्वासोच्छ्वास, आयुष्य शरीर, आदि की समानता असमानता की, तथा उनमें पाई जाने वाली लेश्याओं की और लेश्या वालों के अल्पवहुत्व की विचारणा की गई है। तेरहवे से सत्तरहवें उद्देशक में इसी प्रकार ब्रमशः नागकुमार, सुवर्णकुमार, विद्युत्कुमार और अग्निकुमार देवों में आहार, श्वासोच्छ्वास, आयुष्य, शरीर आदि की समानता-असमानना की तथा उनमें पाई जाने वाली लेश्यामों की एवं उक्त लेश्या वालों के अल्पबहुत्व की प्ररूपणा की . * इस प्रकार सत्तरह उद्देशकों में कुल मिला कर विभिन्न जीवों से सम्बन्धित अध्यात्मविज्ञान की विशद विचारणा की गई है।' 00 1. बियाहपण्णत्तिसुतं भा. 2 (मूलपाठ-टिप्पणयुक्त) पृ.७७३ से 791 तक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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