________________ पढमो उद्देसओ : 'कुजर' प्रथम उद्देशक : कुजर (प्रादि-सम्बन्धी वक्तव्यता) उदायो और भूतानन्द हस्तिराज के पूर्व और पश्चाद्भवों के निर्देशपूर्वक सिद्धिगमननिरूपरण 3. रायगिहे जाव एवं वदासि[३] राजगृह नगर में यावत् गौतम स्वामी ने इस प्रकार पूछा४. उदायो णं भंते ! हत्थिराया कओहितो अणंतरं उव्वट्टित्ता उदायिहस्थिरायत्ताए उववन्ने ? गोयमा ! असुरकुमारहितो देवेहितो प्रणतरं उध्वट्टित्ता उदायिहत्थिरायत्ताए उववन्ने / [4 प्र.] भगवन् ! उदायी नामक प्रधान हस्ति राज, किस गति से मर कर बिना अन्तर के (सीधा) यहाँ हस्तिराज के रूप में उत्पन्न हुआ ? [4 उ.] गौतम ! वह असुरकुमार देवों में से मर कर सीधा (निरन्तर) यहाँ उदायी हस्तिराज के रूप में उत्पन्न हुआ है। 5. उदायी णं भंते ! हस्थिराया कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छिहिति, कहि उववन्जिहिति ? गोयमा ! इमोसे णं रतणप्पभाए पुढवीए उक्कोससागरोवमद्वितीयंसि नरगंसि नेरइयत्ताए उववजिहिति / [5 प्र.] भगवन् ! उदायो हस्तिराज यहाँ से काल के अवसर पर काल करके कहाँ जाएगा ? कहाँ उत्पन्न होगा ? [5 उ.] गौतम ! वह यहाँ से काल करके इस रत्नप्रभा-पृथ्वी के एक सागरोपम की उत्कृष्ट स्थिति वाले नरकावास (नरक) में नै रयिक रूप से उत्पन्न होगा। 6. से णं भंते ! ततोहितो अणंतरं उच्चट्टित्ता कहि गच्छिहिति ? कहि उववजिहिति ? गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिति जाव अंतं काहिति / [6 प्र.] भगवन् ! (फिर वह) वहाँ (रत्नप्रभा पृथ्वी) से अन्तररहित निकल कर कहाँ जाएगा? कहाँ उत्पन्न होगा? [6 उ.] गौतम ! वह महा विदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्ध होगा, यावत् सर्व दुःखों का अन्त करेगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org