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________________ 588] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [14 प्र.] भगवन् ! वर्षा बरस रही है अथवा (वर्षा) नहीं बरस रही है ? ---यह जानने के लिए कोई पुरुष अपने हाथ, पैर, बाहु या ऊरु (जांघ) को सिकोड़े या फैलाए तो उसे कितनी क्रियाएँ लगती हैं ? [14 उ.] गौतम ! वर्षा बरस रही है या नहीं ?, यह जानने के लिए कोई पुरुष अपने हाथ यावत् ऊरु को सिकोड़ता है या फैलाता है तो, उसे कायिकी आदि पांचों क्रियाएँ लगती हैं / विवेचन--प्रस्तुत सूत्र में वर्षा का पता लगाने के लिए हाथ आदि अवयवों को सिकोड़ने और फैलाने में कायिकी प्राधिकरणिकी, प्राषिकी, पारितापनिकी और प्राणातिपातकी, ये पांचों क्रियाएं एक या दूसरे प्रकार से लगती हैं, इस सिद्धान्त की प्ररूपणा की गई है। महद्धिक देव का लोकान्त में रहकर अलोक में अवयव-संकोचन-प्रसारण-असामर्थ्य 15. [1] देवे णं भंते ! महिड्ढोए जाव महेसक्खे लोगते ठिच्चा पभू अलोगसि हत्थं वा माउंटावेत्तए वा पसारेत्तए वा? णो इण? सम8। [15-1 प्र.] भगवन् ! क्या महद्धिक यावत् महासुखसम्पन्न देव लोकान्त में रह कर अलोक में अपने हाथ यावत् ऊरु को सिकोड़ने और पसारने में समर्थ है ? [15-1 उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ (शक्य) नहीं / [2] से केणटुणं भंते ! एवं वुच्चति 'देवे जं महिड्डीए जाव लोगते ठिच्चा णो पभू अलोगसि हत्थं वा जाव पसारेत्तए वा' ? गोयमा! जीवाणं आहारोवचिया पोग्गला, बोंदिचिया पोग्गला, कलेवरचिया पोग्गला, पोग्गलमेव पप्प जीवाण य अजीवाण य गतिपरियाए आहिज्जइ, अलोए गं नेवत्थि जीवा, नेवत्थि पोग्गला, से तेण?णं जाव पसारेत्तए वा। सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति० / ॥सोलसमे सए : अट्ठमो उद्देसमो समत्तो // 16-8 // [15-2 प्र.] भगवन् ! क्या कारण है कि महद्धिक देव लोकान्त में रह कर अलोक में अपने हाथ यावत् ऊरु को सिकोड़ने और पसारने में समर्थ नहीं ? [15-2 उ.] गौतम ! जीवों के अनुगत आहारोपचित पुद्गल, शरीरोपचित पुद्गल और कलेवरोपचित पुद्गल होते हैं तथा पुद्गलों के आश्रित ही जीवों और अजीवों की गतिपर्याय कही गई है / अलोक में न तो जीव हैं और न ही पुद्गल हैं। इसी कारण पूर्वोक्त देव यावत् सिकोड़ने और पसारने में समर्थ नहीं हैं। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है, यों कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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