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________________ सोलहवां शतक : उद्देशक 8] [587 रूपी अजीव के 4 और अरूपो अजीब के 6 भेद होते हैं। शर्कराप्रभा के समान शेष सभी नरकपृश्चियों की तथा सौधर्म से लेकर ईषत्प्रारभारा तक की वक्तव्यता जाननी चाहिए। विशेषता यह है कि जीवदेश को अपेक्षा से अच्युत कल्प तक देवों का गमनागमन सम्भव होने से (वहाँ तक) पचन्द्रिय के तीन भंग और द्वीन्द्रिय ग्रादि के दो-दो भंग होते हैं। नौ ग्रेवेयर तथा अनुत्तर विमानों में तथा ईषत्प्रारभारा पृथ्वी में देवों का गमनागमन न होने से पंचेन्द्रिय के भी दो-दो भंग कहने चाहिए।' ___ कठिन शब्दार्थ---केमहालए--कितना बड़ा / पाइल्ल-आदि (पहले) का / अद्धासमयोकाल / पुरच्छिमिल्ले-पूर्व दिशा का / हेदिल्ले-नीचे का, अधस्तन / दाहिणिल्ले–दक्षिण दिशा का / उरिल्ले-उपरितन, ऊपर का / मज्झिल्लविरहिओ-मध्यम भंग से रहित / परमाणु को एक समय में लोक के पूर्व-पश्चिमादि चरमान्त तक गति-सामर्थ्य 13. परमाणुपोग्गले गं भंते ! लोगस्स पुरथिमिल्लाओ चरिमंतानो पच्चस्थिमिल्ल चरिमंतं एगसमएणं गच्छति, पच्चथिमिल्लाओ चरिमंताओ पुरथिमिल्लं चरिमंतं एगसमएणं गच्छति, दाहिणिल्लाओ चरिमंताओ उत्तरिल्लं जाव गच्छति, उत्तरिल्लाओ० दाहिणिल्लं जाव गच्छति, उरिल्लाओ चरिमंताओ हेदिल्लं चरिमंतं एग० जाव गच्छति, हेदिल्लामो चरिमंताओ उवरिल्लं चरिमंतं एगसमएणं गच्छति ? हंता, गोयमा ! परमाणुपोग्गले णं लोगस्स पुरथिमिल्ल० तं चेव जाव उवरिल्लं चरिमंतं गच्छति / [13 प्र.] भगवन् ! क्या परमाणु-पुदगल एक समय में लोक के पूर्वीय चरमान्त से पश्चिमीय चरमान्त में, पश्चिमीय चरमान्त से पूर्वीय चरमान्त में, दक्षिणी चरमान्त से उत्तरीय चरमान्त में, उत्तरीय चरमान्त से दक्षिणी चरमान्त में, ऊपर के चरमान्त से नीचे के चरमान्त में और नीचे के चरमान्त से ऊपर के चरमान्त में जाता है ? 613 उ.] हाँ, गौतम ! परमाणु पुद्गल एक समय में लोक के पूर्वीय चरमान्त से पश्चिमीय चरमान्त में यावत् नीचे के चरमान्त से ऊपर के चरमान्त में जाता है / विवेचन परमाणु पुद्गल एक समय में सभी चरमान्तों तक इधर से उधर गति कर सकता है, यह तथ्य प्रस्तुत सूत्र में प्रस्तुत किया गया है / वृष्टिनिर्णयार्थ करादि संकोचन-प्रसारण में लगने वाली क्रियाएँ 14. पुरिसे णं भंते ! वासं वासति, वासं नो वासतीति हत्थं वा पायं वा बाहुं वा ऊरुवा आउंटावेमाणे वा पसारेमाणे वा कति किरिए ? गोयमा ! जावं च णं से पुरिसे वासं वासति, वासं नो वासतीति हत्थं वा जाव करवा आउंटावेति वा पसारेति वा तावं च णं से पुरिसे काइयाए जाव पंचहि किरियाहि पुट्ठ / 1. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 715. 716, 117 (ख) भगवती, (हिन्दी विवेचन) भा. 5, पृ. 2582 2. वही, भा. 5, पृ. 2575 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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