________________ सोलहवां शतक : उद्देशक 8] [589 विवेचन-लोक में रह कर अलोक में गति न होने का कारण-जीव के साथ रहे हुए पुद्गल आहाररूप में, शरीररूप में और कलेवररूप में तथा श्वासोच्छ्वास आदि के रूप में उपचित होते हैं / अर्थात् पुद्गल जीवानुगामी स्वभाव वाले होते हैं। जिस क्षेत्र में जीव होते हैं, वहीं पुद्गलों की गति होती है। इसी प्रकार पुद्गलों के आश्रित जीवों का और पुद्गलों का गतिधर्म होता है। यानी जिस क्षेत्र में पूद्गल होते है उसी क्षेत्र में जीवों और पुदगलों को गति होती है। अलोक में धर्मास्किाय न होने से वहां न तो जीव और पुद्गल हैं और न उनकी गति होती है।' // सोलहवां शतक : आठवाँ उद्देशक समाप्त // 1. भगवती, अ. वृत्ति, पत्र 717 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org