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________________ 146 ] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र पर रखने से नहीं डूबती बल्कि ऊर्ध्वगामी हो; जैसे-लकड़ी आदि / तिरछी जाने वाली वस्तु गुरु-लघु है। जैसे-वायु। सभी अरूपी द्रव्य अगुरुलघु हैं; जैसे—आकाश आदि / तथा कार्मणपुद्गल आदि कोई-कोई रूपी पुद्गल चतुःस्पर्शी (चौफरसी) पुद्गल भो अगुरुल होते हैं। अष्टस्पर्शी (अठफरसी) पुद्गल गुरु-लवु होते हैं / यह सब व्यवहारनय की अपेक्षा से है। निश्चयनय की अपेक्षा से कोई भी द्रव्य एकान्तगुरु या एकान्तलघु नहीं है। व्यवहारनय की अपेक्षा से बादरस्कन्धों में भारीपन या हल्कापन होता है, अन्य किसी स्कन्ध में नहीं। निष्कर्ष : निश्चयनय से अमूर्त और सूक्ष्म चतु:स्पर्शी पुद्गल अगुरुल हैं / इनके सिवाय शेष पदार्थ गुरुलधु हैं। प्रथम और द्वितीय भंग शून्य हैं। ये किसी भी पदार्थ में नहीं पाये जाते / हाँ, व्यवहारनय से चारों भंग पाये जाते हैं। ___ अवकाशान्तर चौदह राजू परिमाण पुरुषाकार लोक में नीचे की ओर 7 पृथ्वियाँ (नरक) हैं / प्रथम पृथ्वी के नीचे घनोदधि, उसके नीचे घनवात, उनके नीचे तनुवात है, और तनुवात के नीचे आकाश है। इसी क्रम से सातों नरकपृथ्वियों के नीचे 7 आकाश हैं, इन्हें ही अवकाशान्तर कहते हैं / ये अवकाशान्तर आकाशरूप होने से अगुरुलबु हैं।' श्रमणनिर्ग्रन्थों के लिए प्रशस्त तथा अन्तकर 17. से नणं भंते ! लावियं अप्पिच्छा अमुच्छा अगेही अपडिबद्धता समणाणं णिग्गंथाणं पसत्थं ? हंता, गोयमा ! लावियं जाव पसत्थं / [17 प्र.] भगवन् ! क्या लाघव, अल्प इच्छा, अमूर्छा, अनासक्ति (अगृद्धि) और अप्रतिवद्धता, ये श्रमणनिर्ग्रन्थों के लिए प्रशस्त हैं ? / [17 उ.] हाँ गौतम ! लाघव यावत् अप्रतिबद्धता प्रशस्त हैं। 18. से नणं भंते ! अकोहत्तं प्रमाणत्तं अमायत्तं अलोभत्तं समणाणं निग्गंथाणं पसत्थं ? हंता, गोयमा! अकोहत्तं जाव पसत्थं / [18 प्र.] भगवन् ! क्रोधरहितता, मानरहितता, मायारहितता और अलोभत्व, क्या ये श्रमण निग्रन्थों के लिए प्रशस्त हैं ? [18 उ.] हाँ गौतम ! क्रोधरहितता यावत् अलोभत्त्व, ये सब श्रमणनिम्रन्थों के लिए प्रशस्त हैं। 19. से नणं भंते ! कंखा-पदोसे खीणे समणे निगंथे अंतकरे भवति, अंतिमसरीरिए वा, बहमोहे वि य णं पुस्वि विहरिता ग्रह पच्छा संडे कालं करेति तओ पच्छा सिझति 3 जाव अंतं करेइ ? 1. (क) भगवती सूत्र अ. वृत्ति पत्रांक 96, 97 (ख) णिन्छयो सव्वमुरु, सम्वलह वा ण विज्जए दव्वं / ववहारमो उ जुज्ज इ, बायरखं सु ण अग्रणेसु // 1 // अगुरुलहू चउम्फासा, अरू विदव्वा य होंति णायव्वा / सेसाओ अट्ठफासा, गुरुलहया णिच्छयणयस्स // 2 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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