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________________ प्रथम शतक : उद्देशक-९ ] [ 145 [10.1 प्र.] भगवन् ! कृष्णलेश्या क्या गुरु है, लघु है ? या गुरुल है अथवा अगुरुल है? [10-1 उ.] गौतम ! कृष्णलेश्या गुरु नहीं है, लघु नहीं है, किन्तु गुरुल है और अगुरुल बु भी है। [2] से केण?णं ? गोयमा! दव्वलेसं पडुच्च ततियपदेणं, भावलेसं पडुच्च च उत्थपदेणं / [10-2 प्र.] भगवन् ! ऐसा कहने का क्या कारण है ? [10-2 उ.] गौतम ! द्रव्यलेश्या की अपेक्षा तृतीय पद से (अर्थात्-गुरुल त्रु) जानना चाहिए, और भावलेश्या की अपेक्षा चौथे पद से (अर्थात् अगुरुलघु) जानना चाहिए। (3) एवं जाव सुक्कलेसा / [10-3] इसी प्रकार शुक्ललेश्या तक जानना चाहिए / 11. दिट्टी-दसण-नाण-अण्णाण-सग्णानो चउत्थपदेणं तब्वायो। [11] दृष्टि, दर्शन, ज्ञान, अज्ञान और संज्ञा को भी चतुर्थ पद से (आगुरुल यु) जानना चाहिए। 12. हेछिल्ला चत्तारि सरीरा नेयम्बा ततियएणं पदेणं / कम्मयं च उत्थएणं पदेणं / [12] आदि के चारों शरीरों-औदारिक, वैक्रिय, आहारक और तेजस शरीर-को तृतीय पद से (गुरुलघु) जानना चाहिए, तथा कार्मण शरीर को चतुर्थ पद से (अगुरुल यु) जानना चाहिए / 13. मणजोगो वइजोगो चउत्थएणं पदेणं / कायजोगो ततिएणं पदेणं / [13] मनोयोग और बचनयोग को चतुर्थ पद से (अगुरुल घु) और काययोग को तृतीय पद से (गुरुलघु) जानना चाहिए। 14. सागारोवप्रोगो प्रणागारोवोगो चउत्थएणं पदेणं / [14] साकारोपयोग और अनाकारोपयोग को चतुर्थ पद से जानना चाहिए / 15. सव्वदन्वा सम्धपदेसा सम्वपज्जवा जहा पोग्गलस्थिकारो (सु.८)। [15] सर्वद्रव्य, सर्वप्रदेश और सर्वपर्याय पुद्गलास्तिकाय के समान समझना चाहिए। 16. तीतद्धा प्रणागतद्धा सम्वद्धा चउत्थेणं पदेणं / [16] अतीतकाल, अनागत (भविष्य) काल पीर सर्वकाल चौथे पद से अर्थात् अगुरुल जानना चाहिए। विवेचन-पदार्थों को गुरुता-लघुता प्रादि का चतुर्भग की अपेक्षा से विचार प्रस्तुत तेरह सूत्रों (सू. 4 से 16 तक) में अवकाशान्तर, घनवात, तनुवात आदि विविध पदार्थों तथा चौबीस दण्डक के जीवों, धर्मास्तिकाय आदि पंचास्तिकाय, लेश्या आदि की दृष्टि से गुरुता, लघुना, गुरुलघुता और अगुरुलबुता का विचार प्रस्तुत किया गया है। गुरु-लघु आदि की व्याख्या--गुरु का अर्थ है-भारी / भारी वह वस्तु होती है, जो पानी पर रखने से डूब जाती है। जैसे–पत्थर आदि / लधु का अर्थ है-हल्को। हल्को वह वस्तु है, जो पानी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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