________________ 144 ] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [6-1 उ.] गौतम ! नारक जीव गुरु नहीं हैं, लघु नहीं, किन्तु गुरुलघु हैं और अगुरुलघु _ [2] से केण?णं ? गोयमा / वेउब्विय-तेयाइं पडुच्च नो गल्या, नो लहुया, गरुयलहुया, मो अरुगुयलहुया जीवं च कम्मणं च पडुच्च नो गरुया, नो लहुया, नो गरुयलहुया, अगरुयलहुया। सेतेण?णं० / [6-2 प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है ? [6-2 उ.] गौतम ! वैक्रिय और तैजस शरीर की अपेक्षा नारक जीव गुरु नहीं हैं, लघु नहीं है, अगुरुल भी नहीं हैं ; किन्तु गुरु-लघु हैं। किन्तु जीव और कार्मणशरीर की अपेक्षा नारक जीव गुरु नहीं हैं, लबु भी नहीं हैं, गुरु-लवु भी नहीं हैं, किन्तु अगुरुल यु हैं। इस कारण हे गौतम! पूर्वोक्त कथन किया गया है। [3] एवं जाव वेमाणिया। नवरं णाणत्तं जाणियव सरीरेहिं / [6-3] इसी प्रकार वैमानिकों (अन्तिम दण्डक) तक जानना चाहिए, किन्तु विशेष यह है कि शरीरों में भिन्नता कहना चाहिए। 7. धम्मत्थिकाये जाव जीवत्यिकाये च उत्थपदेणं / [7] धर्मास्तिकाय से लेकर यावत् (अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय और) जीवास्तिकाय तक चौथे पद से (अगुरुल बु) जानना चाहिए। 8. पोग्गलस्थिकाए णं भंते ! किं गरुए, लहुए, गरुयलहुए, प्रगरुयलहुए ? गोयमा ! णो गरुए, नो लहुए, गरुयलहुए वि, अगरुयलहुए वि। से केणट्रेणं? गोयमा ! गरुयलहुयदव्वाइं पडुच्च नो गरुए, नो लहुए, गरुयलहुए, नो प्रगरुपलहुए। अगरुपलहुयदब्वाई पडुच्च नो गरुए, नो लहुए, नो गरुयलहुए, अगरुयलहुए / [8 प्र.] भगवन् ! पुद्गलास्तिकाय क्या गुरु है, लघु है, गुरुल त्रु है अथवा अगुरुलघु है ? [8 उ.] गौतम ! पुद्गलास्तिकाय न गुरु है, न लघु है, किन्तु गुरुल है और अगुरुलघु [प्र.] भगवन् ! इसका क्या कारण है ? [उ.] गौतम ! गुरुलघु द्रव्यों की अपेक्षा पुद्गलास्तिकाय गुरु नहीं है, लवु नहीं है, किन्तु गुरुल है, अगुरुल नहीं हैं / अगुरुलधु द्रव्यों की अपेक्षा पुद्गलास्तिकाय गुरु नहीं, लवु नहीं है, न गुरु-लघु है, किन्तु अगुरुलघु है। 6. समया कम्माणि य चउत्थपदेणं / [9] समयों और कर्मों (कार्मण शरीर) को चौथे पद से जानना चाहिए अर्थात्-समय और कार्मण शरीर अगुरुल हैं। 10. [1] कण्हलेसा णं भंते ! कि गरुया, जाव अगल्यलहुया ? गोयमा ! नो गरुया, नो लहुया, गरुयलहुया बि, अगरयलहुया वि / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org