________________ सत्तमो उद्देसओ : 'उवओग' सप्तम उद्देशक : 'उपयोग' प्रज्ञापनासूत्र-अतिदेशपूर्वक उपयोग-भेद-प्रभेदनिरूपण 1. कतिविधे गं भंते ! उवभोगे पन्नते ? गोयमा ! दुविहे उपयोगे पन्नत्ते, एवं जहा उवयोगपयं पन्नवणाए तहेव निरवसेसं भाणियव्वं पासणयापयं च निरवसेसं नेयव्यं / सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति० / सोलसमे सए : सत्तमो उद्देसनो समत्तो // 16-7 // [1 प्र.] भगवन्! उपयोग कितने प्रकार का कहा है ? [1 उ.) गौतम ! उपयोग दो प्रकार का कहा है। प्रज्ञापनासूत्र के उपयोग पद (26 वें) में जिस प्रकार कहा है, वह सब यहाँ कहना चाहिए / तथा (इसी प्रज्ञापनासूत्र का) तीसवाँ पश्यत्तापद भी यहाँ सम्पूर्ण कहना चाहिए / हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है; भगवन् ! यह इसी प्रकार है; यों कह कर (गौतमस्वामी) यावत् विचरते हैं। विवेचन-उपयोग और पश्यत्ता : स्वरूप, अन्तर और प्रकार-चेतनाशक्ति के व्यापार को उपयोग कहते हैं। उसके दो भेद हैं-साकारोपयोग और अनाकारोपयोग / साकारोपयोग के 8 भेद हैं--पांच ज्ञान और तीन अज्ञान / अनाकारोपयोग के चक्षुदर्शन आदि चार भेद हैं। इसका समग्र वर्णन प्रज्ञापना के 26 वें पद से समझना चाहिए। 'पश्यतो भावः पश्यत्ता'। अर्थात्-उत्कृष्ट बोध का परिणाम पश्यत्ता है। इसके भी दो भेद हैं साकार पश्यत्ता और अनाकार पश्यत्ता। साकारपश्यत्ता के 6 भेद हैं, यथा-मतिज्ञान को छोड़ कर 4 ज्ञान और मति-अज्ञान को छोड़ कर दो अज्ञान हैं। अनाकारपश्यत्ता के 3 भेद हैं / यथा- अचक्षुदर्शन को छोड़ कर शेष तीन दर्शन / यद्यपि पश्यत्ता और उपभोग, ये दोनों साकार-अनाकार के भेद से तुल्य हैं, तथापि वर्तमानकालिक स्पष्ट या अस्पष्ट बोध को उपयोग और त्रैकालिक स्पष्ट बोध को पश्यत्ता कहते हैं / यही पश्यत्ता और उपयोग का अन्तर है।' अचक्षुदर्शन अनाकारपश्यत्ता क्यों नहीं ?–पश्यत्ता कहते हैं-प्रकृष्ट ईक्षण (प्रकर्षतायुक्त देखने) को। इस दृष्टि से पश्यत्ता चक्षुदर्शन में घटित हो सकती है, अचक्षुदर्शन में नहीं। क्योंकि प्रकृष्ट ईक्षण चक्षुरिन्द्रिय का ही होता है / 2 / 1. (क) प्रज्ञापना (मूलपाठ टिप्पण) भा. 1, (म. जै. विद्या.) सू. 1908-35 1936-64, पृ. 407-9, 410-12 (ख) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 713-714 2. वही, पत्र 714 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org