SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1817
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चउत्थो उद्देसओ : 'जावतियं' चतुर्थ उद्देशक : 'यावतीय' तपस्वी श्रमरणों के जितने कर्मों को खपाने में नैरपिक लाखों करोड़ों वर्षों में भी असमर्थ : दृष्टान्त पूर्वक निरूपण 1. रायगिहे जाब एवं वदासि[१] राजगृह नगर में (भगवान् महावीर स्वामी से गौतम स्वामी ने) यावत् इस प्रकार पूछा 2. जावतियं णं भंते ! अन्नगिलायए सम निग्गथे कम्म निज्जरेति एवतियं कम्मं नरएसु नेरतिया वासेण वा वासेहि वा वाससतेण वा खवयंति ? णो इ8 सम8। [2 प्र.] भगवन् ! अन्नालायक श्रमण निर्गन्थ जितने कर्मों की निर्जरा करता है, क्या उतने कर्म नरकों में नैरयिक जीव एक वर्ष में, अनेक वर्षों में अथवा सौ वर्षों में खपा (क्षय कर) देते हैं ? [2 उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं / 3. जावतियं णं भंते ! चउत्थभत्तिए समणे निगथे कम्म निज्जरेति एवतियं कम्म नरएसु नेरतिया वाससतेण वा वाससतेहि वा वाससहस्सेण वा खवयंति ? णो इण? सम?। 63 प्र. भगवन् ! चतुर्थ भक्त (एक उपवास) करने वाला श्रमण-निर्गन्थ जितने कर्मों की निर्जरा करता है, क्या उतने कर्म नरकों में नैयिक जीव सौ वर्षों में, अनेक सौ वर्षों में या एक हजार वर्षों में खपाते हैं ? {3 उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं / 4. जावतियं गं भंते ! छत्तिए समणे निगथे कम्म निज्जरेति एवतियं कम्म नरएसु रतिया वाससहस्सेण वा वासप्तहस्सेहि वा वाससयसहस्सेण वा खवयंति ? णो इण? सम?। [4 प्र. भगवन् ! षष्ठभक्त (बेला) करने वाला श्रमण निर्ग्रन्थ जितने कर्मों की निर्जरा करता है, क्या उतने कर्म नरकों में नैरयिक जीव एक हजार वर्षों में, अनेक हजार वर्षों में, अथवा एक लाख वर्षों में क्षय कर पाता है ? [4 उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy