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________________ सोलहवां शतक : उद्देशक 4] 5. जावतियं णं भंते ! अट्ठमत्तिए समणे निग्गथे कम्मं निज्जरेति एवतियं कम्मं नेरइया वाससपसहस्सेणं वा वाससयसहस्सेहि वा वासकोडीए वा खवयंति ? नो इण? समट्ठ। [5 प्र.] भगवन् ! अष्टमभक्त (तेला) करने वाला श्रमण निम्रन्थ जितने कर्मों की निर्जरा करता है, क्या उतने कर्म नरकों में नैरयिक जीव एक लाख वर्षों में, अनेक लाख वर्षों में या एक करोड़ वर्षों में क्षय कर पाता है ? [5 उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं। 6. जातियं णं भंते ! दसमभत्तिए समणे निग्गंथे कम्मं निज्जरेति एवतियं कम्मं नरएस . नेरतिया वासकोडीए वा वासकोडीहि वा वासकोडाकोडीए वा खवयंति ? नो इणटुसमट्ठ। [6 प्र.] भगवन् ! दशम भक्त (चौला) करने वाला श्रमण निर्ग्रन्थ जितने कर्मों की निर्जरा करता है, क्या उतने कर्म नरकों में नैरयिक जीव, एक करोड़ वर्षों में, अनेक करोड़ वर्षों में या कोटाकोटी वर्षों में क्षय कर पाता है ? [6 उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं / 7. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति–जावतियं अन्नगिलातए समणे निगंथे कम्मं निज्जरेति एवतियं कम्मं नरएसु नेरतिया वासेण वा वासे हि वा वाससएण वा नो खवयंति, जावतियं चउत्थ. भत्तिए, एवं तं चेव पुत्वभणियं उच्चारेयध्वं जाव बासकोडाकोडीए वा नो खवयंति ? गोयमा ! “से जहानामए–केयि पुरिसे जुणे जराजज्जरियदेहे सिढिलतयावलितरंगसंपिणद्धगत्ते पविरलपरिसडियदंतसेढी उण्हाभिहए ताहाभिहए आउरे झुझिते पिवासिए दुब्बले किलंते, एगं महं कोसंबगंडियं सुक्क जडिलं गठिल्लं चिक्कणं वाइद्ध अपत्तियं मुडेण परसुणा अक्कमेज्जा, तए णं से पुरिसे महंताई महंताई सद्दाई करेइ, नो महंताई महंताई दलाई अवद्दाले ति, एवामेव गोयमा! नेरइयाणं पाबाई कम्माई गाढीकयाई चिक्कणोकयाई एवं जहा छठसए (स० 6 उ० 1 सु० 4) जाव नो महापज्जवसाणा भवति / "से जहा वा केयि पुरिसे अहिकरणि पाउडेमाणे महया जाव नो महापज्जवसाणा भवंति / "से जहानामए केयि पुरिसे तरुणे बलवं जाव मेहावी निउणसिप्पोवगए एगं महं सामलिगंडियं उल्लं अडिलं प्रगठिल्लं प्रचिक्कणं प्रवाइद्ध सपत्तियं तिक्खेण परसुणा अक्कमेज्जा, तए णं से युरिसे नो महंताई महंताई सद्दाई करेति, महंताई महंताई दलाई अवद्दालेति, एवामेव गोयमा ! समणाणं निग्गंथाणं अहाबादराई कम्माई सिढिलोकयाई पिट्ठियाई कयाई जाव खिप्पामेव परिविद्वत्थाई भवंति, जावतियं तावतियं जाव महापज्जवसाणा भवंति / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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