________________ नवमो उद्देसओ : गरुए नवम उद्देशक : गरुक जीवों के गुरुत्व-लघुत्वादि को प्ररूपणा 1. कह णं भंते ! जीवा गरुयत्तं हव्वमागच्छंति ? गोयमा! पाणातिवातेणं मुसावादेणं अदिष्णा मेहुण० परिग्ग० कोह० माण० माया० लोभ. पेज्ज० दोस० कलह प्रभक्खाण पेसुन्न. रति-प्रति० परपरिवाय० मायामोस० मिच्छादसणल्लेणं, एवं खलु गोयमा ! जीवा गरुयत्तं हब्बमागच्छति / [1 प्र.] भगवन् ! जोव, किस प्रकार शीघ्र गुरुत्व (भारोपन) को प्राप्त होते हैं ? [1 उ.] गौतम ! प्राणातिपात से, मृषावाद से, अदत्तादान से, मैथुन से, परिग्रह से, क्रोध से, मान से. माया से. लोभ से प्रेय (राग) से देष से. कल से. अभ्याख्यान से. पैशन्य से. रति--परति से, परपरिवाद [परनिन्दा] से, मायामृषा से और मिथ्यादर्शनसल्य से; इस प्रकार हे गौतम ! (इन अठारह ही पापस्थानों का सेवन करने से) जीव शीघ्र गुरुत्व को प्राप्त होते हैं। 2. कहं णं भंते ! जीवा लहयत्तं हवमगच्छंति ? गोयमा ! पाणातिवातवेरमणं जाव मिच्छादसणसल्लवेरमणेणं, एवं खलु गोयमा ! जीवा लहुयत्तं हवमागच्छति / [2 प्र.] भगवन् ! जीव किस प्रकार शीघ्र लघुत्व (लघुता = हल्केपन) को प्राप्त करते हैं ? [2 उ.] गौतम ! प्राणातिपात से विरत होने से यावमिथ्यादर्शनशल्य से विरत होने से जीव शीघ्र लघुत्व को प्राप्त होते हैं / 3. एवं प्राकुलोकरेंति,' एवं परित्तीकरेंति / एवं दोहोकरेंति, एवं हस्सोकरेंति / एवं अणुपरियट्ट ति, एवं वीतीवयंति / पसत्या चत्तारि / अप्पसत्था चत्तारि। [3] इस प्रकार जीव प्राणातिपात आदि पापों का सेवन करने से संसार को (कर्मों से) बढ़ाते (प्रचुर करते) हैं, दीर्घकालीन करते हैं, और बार-बार भव-भ्रमण करते हैं, तथा प्राणातिपति आदि पापों से निवृत्त होने से जीव संसार को परिमित (परित) करते (घटाते) हैं, अल्पकालोन (छोटा) करते हैं, और संसार को लांघ जाते हैं। उनमें से चार (ल त्रुत्व, संसार का परित्तीकरण, ह्रस्वीकरण एवं व्यतिक्रमण) प्रशस्त हैं, और चार (गुरुत्व, संसार का वृद्धीकरण (प्रचुरीकरण), दीर्चीकरण, एवं (पुन: पुनः भव-भ्रमण) अप्रशस्त हैं। 1. आकुलोकरेंति = प्रचुरीकुर्वन्ति कर्मभिः / परितोकरेंति = स्तोककुर्वन्ति कर्मभिरेव / दोहोकरेंति = दीर्घ प्रचुरकालं कुर्वन्तीत्यर्थः / हस्सीकरेंति = अल्पकालं कुर्वन्ति / अणुपरियति = पौनःपुन्येन भ्रमन्ति / विश्वयंति = व्यतिअन्ति-व्यतिक्रामन्ति / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org