________________ प्रथम सतक : उद्देशक-८ ] [141 अनन्तवीर्य सिद्ध : अवीर्य कसे ?-सिद्धों में सकरणवीर्य के अभाव की अपेक्षा से उन्हें अवीर्य कहा गया है; क्योंकि सिद्ध कृतकृत्य हैं, उन्हें किसी प्रकार का पुरुषार्थ करना शेष नहीं है / अकरणवीर्य की अपेक्षा से सिद्ध सवीर्य (अनन्तवीर्य) हैं ही। शैलेशी शब्द की व्याख्याएँ-(१) शीलेश का अर्थ है--सर्वसंवररूपचारित्र में समर्थ (प्रभु) / उसकी यह अवस्था (2) अथवा शैलेश-मेरुपर्वत, उसकी तरह निष्कम्प-स्थिर अवस्था (3) अथवा सैल (शैल)+इसी (ऋषि)-शैल की तरह चारित्र में अविचल ऋषि की अवस्था; (4) सेऽलेसी = सालेश्यी = लेश्यारहित स्थिति / ' / / प्रथमशतक : अष्टम उद्देशक समाप्त / / 1. विशेषावश्यक भाष्य गाथा 3663-64 पृ. 728 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org