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________________ 138] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र (1) मृगवध के लिए जाल फैलाने, मगों को बांधने तथा मारने वाले को लगने वाली क्रियाएँ। (2) तिनके इकठ्ठ करके प्राग डालने एवं जलाने वाले को लगने वाली क्रियाएँ / (3) मगों को मारने हेतु बाण फैंकने, बींधने और मारने वाले को लगने वाली क्रियाएँ / (4) बाण को खींचकर खड़े हुए पुरुष का मस्तक कोई अन्य पुरुष पीछे से आकर खड्ग से काट डाले, इसी समय वह बाण उछल कर यदि मृग को बींध डाले तो मृग मारने वाला मृगवैर से स्पृष्ट और पुरुष को मारने वाला पुरुषवैर से स्पृष्ट होता है, उनको लगने वाली क्रियाएँ। (5) बरछी या तलवार द्वारा किसी पुरुष का मस्तक काटने वाले को लगने वाली क्रियाएँ / षटमास की अवधि क्यों ? --जिस पुरुष के प्रहार से मृगादि प्राणी छह मास के भीतर मर जाए तो उनके मरण में वह प्रहार निमित्त माना जाता है। इसलिए मारने वाले को पाँचों क्रियाएँ लगती हैं, किन्तु वह मृगादि प्राणी छह महीने के बाद मरता है तो उसके मरण में वह प्रहार निमित्त नहीं माना जाता, इसलिए उसे प्राणातिपातिकी के अतिरिक्त शेष चार क्रियाएँ ही लगती हैं। यह कथन व्यवहारनय की दृष्टि से है, अन्यथा उस प्रहार के निमित्त से जब कभी भी मरण हो, उसे पाँचों क्रियाएँ लगती हैं। आसन्नवधक-वरछी या खड्ग से मस्तक काटने वाला पुरुष आसन्नबधक होने के कारण तीन्न वैर से स्पृष्ट होता है / उस वैर के कारण वह उसी पुरुष द्वारा अथवा दूसरे के द्वारा उसी जन्म में या जन्मान्तर में मारा जाता है। पंचक्रियाएँ-(१) कायिकी-काया द्वारा होने वाला सावध व्यापार (2) प्राधिकरणिकीहिंसा के साधन---शस्त्रादि जुटाना, (3) प्राषिकी तीव्र द्वेष भाव से लगने वाली क्रिया, (4) पारितापनिकी-किसी जीव को पीड़ा पहुँचाना, और (5) प्राणातिपातिकी-जिस जीव को मारने का संकल्प किया था, उसे मार डालना / अनेक बातों में समान दो योद्धाओं में जय-पराजय का कारण 6. दो भंते ! पुरिसा सरिसया सरित्तया सरिन्वया सरिसभंडमत्तोवगरणा अन्नमन्नेणं सद्धि संगाम संगामंति, तत्थ णं एगे पुरिसे पराइणइ एगे पुरिसे पराइज्जइ, से कहमेयं भंते ! एवं ? गोतमा ! सबोरिए परामिणति, अवोरिए पराइज्जति / से केण?णं जाव पराइज्जति ? मोयमा! जस्स गं वीरियवज्झाई कम्माइं नो बधाई नो पुढाई जाव नो अभिसमन्नागताई, नो उदिष्णाइं, उवसंताई भवंति से गं पुरिसे परायिणति; जस्ल णं वोरियवज्झाई कम्माइं बद्धाइं जाव उविण्णाई, कम्माईनो उपसताई भवंति से गं पुरिसे परायिजति / से तेणढणं गोयमा ! एवं बुच्चइ सवोरिए पराजिण इ, प्रवीरिए पराइज्जति ! [9 प्र.] भगवन् ! एक सरोखे, एक सरीखी चमड़ी वाले, समानवयस्क, समान द्रव्य और उपकरण (शस्त्रादि साधन) वाले कोई दो पुरुष परस्पर एक दूसरे के साथ संग्राम करें, तो उनमें से एक पुरुष जीतता है और एक पुरुष हारता है; भगवन् ! ऐसा क्यों होता है ? 1. भगवती सूत्र अ. वृत्ति 93,94 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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