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________________ प्रथम शतक : उद्देशक-८ ] [ 137 [7 प्र.] भगवन् ! कोई पुरुष, कच्छ में यावत् किसी मृग का वध करने के लिए कान तक ताने (लम्बे किये हुए बाण को प्रयत्नपूर्वक खींच कर खड़ा हो और दूसरा कोई पुरुष पीछे से आकर उस खड़े हुए पुरुष का मस्तक अपने हाथ से तलवार द्वारा काट डाले। वह बाण पहले के खिचाव से उछल कर उस मृग को बींध डाले, तो हे भगवन् ! वह पुरुष मृग के वैर से स्पृष्ट है या (उक्त) पुरुष के वैर से स्पृष्ट है ? __ [7 उ.] गौतम ! जो पुरुष मृग को मारता है, वह मृग के वैर से स्पृष्ट है और जो पुरुष, पुरुष को मारता है, वह पुरुष के वैर से स्पृष्ट है / [प्र.] भगवन् ! आप ऐसा किस कारण से कहते हैं कि यावत् वह पुरुष, पुरुष के वैर से स्पृष्ट है ? [उ.] हे गौतम ! यह तो निश्चित है न कि 'जो किया जा रहा है, वह किया हुआ' कहलाता है; 'जो मारा जा रहा है, वह मारा हुआ' 'जो जलाया जा रहा है, वह जलाया हुआ' कहलाता है और 'जो फेंका जा रहा है, वह पका हुआ, कहलाता है ? (गौतम-) हाँ, भगवन् ! जो किया जा रहा है, वह किया हुआ कहलाता है, और यावत्''जो फेंका जा रहा है, वह फैका हुया कहलाता है। (भगवान्–) 'इसलिए इसी कारण हे गौतम ! जो मृग को मारता है, वह मृग के वैर से स्पृष्ट और जो पुरुष को मारता है, वह पुरुष के वैर से स्पृष्ट कहलाता है / यदि मरने वाला छह मास के अन्दर मरे, तो मारने वाला कायिकी आदि यावत् पांचों क्रियाओं से स्पृष्ट कहलाता है और यदि मरने वाला छह मास के पश्चात् मरे तो मारने वाला पुरुष, कायिकी यावत् पारितापनिकी इन चार क्रियाओं से स्पृष्ट कहलाता है। 8. पुरिसे गं भंते ! पुरिसं सत्तीए समभिधंसेज्जा, सयपाणिणा वा से प्रसिणा सीसं छिदेज्जा, ततो णं भंते ! से पुरिसे कतिकिरिए ? गोयमा ! जावं च णं से पुरिसे तं पुरिसं सत्तीए समभिधंसेइ सयपाणिणा वा से प्रसिणा सीसं छिदइ तावं च णं से पुरिसे काइयाए अहिगरणि. जाब पाणातिवायकिरियाए पंचर्चाह किरियाहिं पुढे, आसन्नवहएण य अणवकखणवत्तिएणं पुरिसवेरेणं पुढे / / [8 प्र.] भगवन् ! कोई पुरुष किसी पुरुष को बरछी (या भाले) से मारे अथवा अपने हाथ से तलवार द्वारा उस पुरुष का मस्तक काट डाले, तो वह पुरुष कितनी क्रिया वाला होता है ? 8 उ.] गौतम ! जब वह पुरुष उसे बरछी द्वारा मारता है, अथवा अपने हाथ से तलवार द्वारा उस पुरुष का मस्तक काटता है, तब वह पुरुषकायिकी, प्राधिकरणिकी यावत् प्राणातिपातकी इन पाँचों क्रियाओं से स्पृष्ट होता है और वह आसन्नवधक एवं दूसरे के प्राणों की परवाह न करने वाला पुरुष, पुरुष-वैर से स्पृष्ट होता है। विवेचन-मगघातकादि को लगने वाली क्रियाओं के सम्बन्ध में विचार–प्रस्तुत पाँच सूत्रों (4 से 8 तक) में मगघातक, पुरुषघातक आदि को लगने वाली क्रियाओं के सम्बन्ध में प्रश्नोत्तर प्रस्तुत किये गए हैं / प्रश्नों का क्रम इस प्रकार है-- Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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