________________ 136] [ न्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र गौतम ! वह (पूर्वोक्त) पुरुष कदाचित् तीन क्रियाओं वाला, कदाचित् चार क्रियानों वाला एवं कदाचित् पांचों क्रियानों वाला कहा जाता है। 6. पुरिसे णं भते! कच्छसि वा जाव वणविबुग्गंसि वा मियवित्तीए मियसंकप्पे मियपणिहाणे मियवहाए गंता 'एए मिये' ति काउं अन्नयरस्स मियस्स वहाए उसुनिसिरइ, ततो णं भंते ! से पुरिसे कतिकिरिए ? गोयमा ! सिय तिकिरिए, सिय चकिरिए, सिय पंचकिरिए। से केणणं ? गोयमा! जे भविए निसिरणयाए तिहि; जे भविए निसिरणयाए वि विद्धसणयाए वि, नो मारणयाए चहि; जे भविए निसिरणयाए वि विद्धसणयाए वि मारणयाए वि तावं च णं से पुरिसे जाव पंचहि किरियाहिं पुढे / से लेण? गं गोयमा ! सिय तिकिरिए, सिय चकिरिए, सिय पंचकिरिए। [6 प्र.] भगवन् ! मृगों से आजीविका चलाने वाला, मृगों का शिकार करने के लिए कृतसंकल्प, मृगों के शिकार में तन्मय, मृगवध के लिए कच्छ में यावत् वनविदुर्ग में जाकर 'ये मृग हैं। ऐसा सोचकर किसी एक मृग को मारने के लिए बाण फेंकता है, तो वह पुरुष कितनी क्रिया वाला होता है (अर्थात् उसे कितनी क्रिया लगती हैं?) [6 उ.] हे गौतम ! वह पुरुष कदाचित् तीन क्रिया वाला, कदाचित् चार क्रिया वाला और कदाचित् पाँच क्रिया वाला होता है। [प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है ? [उ.] गौतम ! जब तक वह पुरुष बाण फैकता है, परन्तु मृग को बेधता नहीं है, तथा मृग को मारता नहीं है, तब वह पुरुष तीन क्रिया वाला है। जब वह बाण फेंकता है और मग बेधता है, पर मृग को मारता नहीं है, तब तक वह चार क्रिया वाला है, और जब वह बाण फैकता है, मृग को बेधता है और मारता है; तब वह पुरुष पाँच क्रिया वाला कहलाता है / हे गौतम ! इस कारण ऐसा कहा जाता है कि 'कदाचित् तीन क्रिया बाला, कदाचित् चार क्रिया वाला और कदाचित् पाँच क्रिया वाला होता है।' 7. पुरिसे णं भंते ! कच्छंसि वा जाव अन्नयरस्स मियस्स वहाए प्रायतकण्णायतं उसु प्रायामेत्तां चिट्ठिज्जा, अन्ने य से पुरिसे मांगतो प्रागम्म सयपाणिणा असिणा सीसं छिदेज्जा, से य उसू ताए चेव पुवायामणयाए तं मियं विधेज्जा, से णं भंते! पुरिसे कि मियवेरेणं पुढे? पुरिसवेरेणं पुढें! गोतमा ! जे मियं मारेति से मियवेरेणं पुढे, जे पुरिसं मारेइ से पुरिसवेरेणं पुढे / से केणणं भंते ! एवं बच्चइ जाव से पुरिसवेरेणं पुटू ? से नूर्ण गोयमा ! कज्जमाणे कडे, संधिज्जमाणे संधिते, निव्वतिज्जमाणे निव्वत्तिए, निसिरिज्जमाणे निस? त्ति वत्तव्वं सिया ? हंता, भगवं ! कज्जमाणे कडे जाव निसट्ठति वत्तव्वं सिया / से तेण?णं गोयमा! जे मियं मारेति से मियवेरेणं पुढे जे पुरिसं मारेइ से पुरिसवेरेणं पुट्ठ। अंतो छण्हं मासाणं मरइकाइयाए जाव पंचर्चाह किरियाहि पुढे, बाहिं छह मासाणं मरति काइयाए जाव पारितावणियाए चहि किरियाहिं पुट्ठ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org