________________ प्रथम शतक : उद्देशक- ] [ 135 एक भागवर्ती वन में, पर्वत पर पर्वतीय दुर्गम प्रदेश में, वन में, बहुत-से वृक्षों से दुर्गम वन में, 'ये मृग हैं', ऐसा सोच कर किसी मृग को मारने के लिए कूटपाश रचे (गड्डा बना कर जाल फैलाए) तो है भगवन् ! वह पुरुष कितनी क्रियाओं वाला कहा गया है ? अर्थात्--उसे कितनी क्रियाएँ लगती हैं ? [4 उ.] हे गौतम ! वह पुरुष कच्छ में, यावत्-जाल फैलाए तो कदाचित् तीन क्रिया वाला, कदाचित् चार क्रिया वाला और कदाचित् पांच किया वाला होता है / [प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि 'वह पुरुष कदाचित् तीन क्रियाओं वाला, कदाचित् चार क्रियाओं वाला और कदाचित् पांच क्रियाओं वाला होता है ? उ.] गौतम ! जब तक वह पुरुष जाल को धारण करता है, और मृगों को बांधता नहीं है तथा मृगों को मारता नहीं है, तब तक वह पुरुष कायिकी, प्राधिकरणिकी और प्राषिकी, इन तीन क्रियाओं से स्पृष्ट (तीन क्रियाओं वाला) होता / जब तक वह जाल को धारण किये हुए है और मृगों को बांधता है किन्तु मारता नहीं; तब तक वह पुरुष कायिकी आधिकरणिकी, प्राषिकी, और पारितापनिको, इन चार क्रियाओं से स्पष्ट होता है। जब वह पुरुष जाल को धारण किये हुए है, मृगों को बांधता है और मारता है, तब वह कायिकी, प्राधिकरणिकी, प्राषिकी, पारितापनिकी और प्राणातिपातिको, इन पांचों क्रियाओं से स्पृष्ट होता है। इस कारण हे गौतम ! वह पुरुष कदाचित तीन क्रियाओं वाला, कदाचित चार क्रियायों वाला और कदाचित पांचों क्रियाओं वाला कहा जाता है। 5. पुरिसे णं भंते ! कच्छंसि वा जाव वणविदुग्गसि वा तगाई ऊपविय ऊस विय प्रगणिकायं निसिरह तावं च णभंते ! से पुरिसे कतिकिरिए ? गोयमा ! सिय तिकिरिए सिय चकिरिए सिय पंचकिरिए / से केणणं? गोतमा! जे भविए उस्सवणयाए तिहि; उस्सवणधाए वि निसिरणयाए वि, नो दहणयाए चाहि: जे भविए उस्सवणयाए वि निसिरणयाए वि दहणयाए वि तावं च णं से पुरिसे काइयाए जाव पंचहि किरियाहिं पुढे / से तेणढणं गोयमा ! 0 / [5 प्र.] भगवन् ! कच्छ में यावत्-बनविदुर्ग (अनेक वृक्षों के कारण दुर्गम बन) में कोई पुरुष घास के तिनके इकट्ठ करके उनमें अग्नि डाले तो वह पुरुष कितनी क्रिया वाला होता है ? [5 उ.] गौतम ! वह पुरुष कदाचित् तीन क्रियाओं वाला, कदाचित् चार क्रियाओं वाला और कदाचित् पांच क्रियाओं वाला होता है / [प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है ? [उ.] गौतम ! जब तक वह पुरुष तिनके इकट्ठ करता है, तब तक वह तीन क्रियाओं से स्पृष्ट होता है / जब वह तिनके इकट्ठा कर लेता है, और उनमें अग्नि डालता है, किन्तु जलाता नहीं है, तक तक वह चार क्रियाओं वाला होता है। जब वह तिनके इकट्ठ करता है, उनमें प्राग डालता है और जलाता है, तब वह पुरुष कायिकी आदि पांचों क्रियाओं से स्पृष्ट होता हैं। इसलिए हे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org