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________________ 134 ] [ व्याल्याप्रज्ञप्तिसून यथार्थ स्वरूप को जानकर जो तदनुसार आचरण करता है, वह 'पण्डित' कहलाता है, और जो वस्तुतत्त्व के यथार्थ स्वरूप को जानता है, किन्तु अांशिक (एकदेश) प्राचरण करता है, वह बालपण्डित कहलाता है / एकान्तबाल मिथ्यादृष्टि एवं अविरत होता है, एकान्त-पण्डित महाव्रती साधु होता है और बालपण्डित देशविरत श्रमणोपासक होता है / एकान्तबाल मनुष्य के चारों गतियों का प्रायुष्य बन्ध क्यों? -एकान्त बालत्व समान होते हुए भी एक ही गति का आयुष्यबन्ध न होकर चारों गतियों का आयुबन्ध होता है, इसका कारण एकान्तबालजीवों का प्रकृतिवैविध्य है। कई एकान्तबालजीव महारम्भी, महापरिग्रही, असत्यमार्गोपदेशक तथा पापाचारी होते हैं, वे नरकायु या तिर्यञ्चायु का बन्ध करते हैं। कई एकान्तबालजीव अल्पकषायी, अकामनिर्जरा, बालतप आदि से युक्त होते हैं / वे मनुष्यायु या देवायु का बन्ध करते हैं। एकान्तपण्डित को दो गतियाँ-जिनके सम्यक्त्वसप्तक (अनन्तानुबन्धी चार कषाय और मोहनीयत्रिक इन सात प्रकृतियों) का क्षय हो गया है, तथा जो तद्भवमोक्षगामी हैं, वे आयुष्यबन्ध नहीं करते / यदि इन सातप्रकृतियों के क्षय से पूर्व उनके आयुष्यबन्ध हो गया हो तो सिर्फ एक वैमानिक देवायु का बन्ध करते हैं। इसी कारण एकान्त पण्डित मनुष्य की क्रमश: दो ही गतियाँ कही गई हैं--अन्तक्रिया (मोक्षगति) अथवा कल्पोपपत्तिका (वैमानिक देवगति)।' मगधातकादि को लगने वाली क्रियाओं को प्ररूपणा-- 4. पुरिसे णं भंते ! कच्छंसि वा 1 दहंसि वा 2 उदगंसि वा 3 दवियंसि वा 4 वलयंसि वा 5 नमसि वा 6 गहणंसि वा 7 गहणविदुरगंसि वा 8 पञ्चतंसि वा पन्वतविदुग्गसि वा 10 वर्णसि वा 11 वणविदुर्गसि वा 12 मियवित्तीए मियसंकप्पे मियपणिहाणे मियवहाए गंता 'एते मिए' ति काउं अनयरस्स मियस्स वहाए कुड-पासं उद्दाइ, ततो गं भंते ! से पुरिसे कतिकिरिए ? गोयमा ! जावं च णं से पुरिसे कच्छंसि वा 12 जाव कूड-पासं उद्दाइ तावं च णं से पुरिसे सिघ तिकिरिए, सिय चउकिरिए, सिय पंचकिरिए। से केण भंते ! एवं बच्चति 'सिय तिकिरिए, सिय चकिरिए, सिय पंचकिरिए ? गोयमा ! जे भविए उद्दवणयाए, जो बंधणयाए, णो मारणयाए, तावं च गं से पुरिसे काइयाए अहिंगरणियाए पादोसियाए तोहि किरियाहि पुढे / जे भविए उद्दवणयाए वि बंधणयाए वि, णो मारणयाए तावं च णं से पुरिसे काइयाए अहिारणियाए पायोसियाए पारियावशियाए चहि किरियाहिं पुढे / जे भविए उद्दवणयाए वि बंधणयाए वि मारणयाए वि तावं च णं से पुरिसे काइयाए जाव पाणातिवातकिरियाए पंहि किरियाहि पुट्ठ / से तेण?णं जाव पंचकिरिए। [4 प्र.! भगवन् ! मृगों से आजीविका चलाने वाला, मृगों का शिकारी, मृगों के शिकार में तल्लीन कोई पुरुष मृगवध के लिए निकला हुआ कच्छ (नदी के पानी से घिरे हुए झाड़ियों वाले स्थान) में, द्रह में, जलाशय में, घास आदि के समूह में, वलय (गोलाकार नदी आदि के पानी से टेढ़े-मेढ़े स्थान) में, अन्धकारयुक्त प्रदेश में, गहन (वृक्ष, लता आदि झुड से सघन वन) में, पर्वत के 1. भगवती सूत्र, प्र. वृत्ति पत्रांक 90-91 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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