________________ पन्द्रहवां शतक] [495 [102] आजीविक स्थविरों द्वारा इस प्रकार कहने पर वह अयंपुल आजीविकोपासक हर्षित एवं सन्तुष्ट हुआ और वहाँ से उठकर गोगालक मंखलिपुत्र के पास जाने लगा। 103. तए णं ते आजीविया थेरा गोसालस्स मखलिपुत्तस्स अंबकूणगएडावणट्टयाए एगंतमंते संगारं कुब्वंति। [103] तत्पश्चात् उन ग्राजी बिक स्थविरों ने उक्त प्राम्रफल को एकान्त में डालने का गोशालक को संकेत किया। 104. तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते भाजीवियाणं थेराणं संगारं पडिच्छइ, सं० 50 अंबकूणगं एगंतमंते एडे। [104] इस पर मंखलिपुत्र गोशालक ने आजीविक स्थविरों का संकेत ग्रहण किया और उस माम्रफल को एकान्त में एक ओर डाल दिया। 105. तए णं से अयंपुले आजीवियोवासए जेणेव गोसाले मंखलिपुत्ते तेणेव उवागच्छा, उवा० 2 गोसालं मंखलिपुत्तं तिक्खत्तो जाव पज्जुवासति / [105] इसके पश्चात् अयंपुल आजीविकोपासक मंखलिपुत्र गोशालक के पास आया और मंलिपुत्र गोशालक की तीन बार दाहिनी ओर से प्रदक्षिणा की, फिर यावत् (वन्दना-नमस्कार करके) पर्युपासना करने लगा। 106. 'अयंपुला !' ति गोसाले मंखलिपुत्ते अयंपुलं आजीवियोवासगं एवं वदासि—'से नूणं अयंपुला! पुन्वरत्तावरत्तकालसमयंसि जाव जेणेव ममं अंतियं तेणेव हन्वमागए, से नणं अयंपुला ! अट्ठे समठे ?' 'हंता, अस्थि / तं नो खलु एस अंबकूणए, अंबचोयए णं एसे। किसंठिया हल्ला पन्नत्ता ? बंसीमूलसंठिया हल्ला पण्णत्ता / वीणं वाएहि रे वीरगा!, वीणं वाएहि रे वीरगा ! / [106] 'अयंपुल !' इस प्रकार सम्बोधन कर मंखलिपुत्र गोशालक ने अयंपुल आजीविकोपासक से इस प्रकार पूछा-'हे अयंपुल ! रात्रि के पिछले पहर में यावत् तुझे ऐसा मनोगत संकल्प उत्पन्न हुअा यावत् (इसी के समाधानार्थ) इसो से तू मेरे पास आया है, हे अयंपुल ! क्या यह बात सत्य है?' (अयंपुल-) हाँ, (भगवन् ! यह) सत्य है / (गोशालक-) (हे अयंपुल ! ) मेरे हाथ में वह अाम्र की गुठली नहीं थी, किन्तु आम्रफल की छाल थी / (तुझे यह जिज्ञासा उत्पन्न हुई थी कि) हल्ला का प्राकार कैसा होता है ? (अयं पुल) हल्ला का प्राकार बांस के मूल के प्राकार जैसा होता है / (तत्पश्चात् उन्मादवश गोशालक ने कहा) 'हे वीरो! वीणा बजायो ! वीरो! वीणा बजायो।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org