________________ चौदहवां शतक : उद्देशक 10] [431 14. केवली णं भंते ! सक्करप्पभं पुढवि 'सक्करप्पभपुढवी' ति जाणति पासति ? एवं चेव / [14 प्र.] भगवन् ! क्या केवली, शर्कराप्रभापृथ्वी को, 'यह शर्क राप्रभापृथ्वी है ?' इस प्रकार जानते-देखते हैं ? [14 उ.] हाँ, गौतम ! उसी प्रकार (केवली और सिद्ध दोनों के विषय में पूर्ववत्) समझना चाहिए। 15. एवं जाव अहेसत्तमा / [15] इसी प्रकार यावत् अधःसप्तमपृथ्वी तक (पूर्वोक्त रूप से दोनों के विषय में) समझना चाहिए। 16. केवली गं भंते ! सोहम्मं कप्पं सोहम्मकप्पे' ति जाणति पासति ? हंता, जाणति / एवं चेव / [16 प्र. भगवन् ! क्या केवलज्ञानी सौधर्मकल्प को 'यह सौधर्मकल्प है'-इस प्रकार जानते-देखते हैं ? {16 उ.] हाँ, गौतम, वे जानते-देखते हैं, इसी प्रकार सिद्धों के विषय में भी कहना चाहिए / 17. एवं ईसाणं। [17] इसी प्रकार ईशान देवलोक के जानने-देखने के विषय में जानना चाहिए। 18. एवं जाव अच्चुयं / [18] इसी प्रकार (सनत्कुमार देवलोक से लेकर) यावत् अच्युतकल्प (तक के जानने-देखने) के विषय में कहना चाहिए / 19. केवली णं भंते ! गेवेज्जविमाणे 'गेबेज्जविमाणे त्ति जाणति पासति ? एवं चेव। [19 प्र.] भगवन् ! क्या केवली भगवान वेयकविमान को 'अवेयकविमान है—इस प्रकार जानते-देखते हैं ? [16 उ.] हाँ, गौतम ! पूर्ववत् समझना चाहिए। 20. एवं प्रणुत्तरविमाणे वि / [20] इसी प्रकार (पांच) अनुत्तर विमानों के (जानने-देखने के) विषय में (कहना चाहिए / ) 21. केवली णं भंते ! ईसिपब्भारं पुढवि 'ईसीपन्भारपुढवी' ति जाणति पासति ? एवं चेव / [21 प्र.] भगवन् ! क्या केवलज्ञानी ईषत्प्राग्भारपृथ्वी को 'ईषत्प्राग्भारपृथ्वी है-- इस प्रकार जानते-देखते हैं ? [21 उ.] (हाँ, गौतम ! ) पूर्ववत् समझना चाहिए / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org