________________ 432] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र 22. केवली णं भंते ! परमाणुपोग्गलं 'परमाणुपोग्गले' ति जाणति पासति ? एवं चेव / [22 प्र.] भगवन् ! क्या केवलज्ञानी परमाणुपुद्गल को 'यह परमाणुपुद्गल है' इस प्रकार जानते-देखते हैं ? [22 उ.] इस विषय में भी पूर्ववत् समझना चाहिए / 23. एवं दुपदेसियं खंधं / [23] इसी प्रकार द्विप्रदेशी स्कन्ध के विषय में समझना चाहिए। 24. एवं जाब जहा णं भंते ! केवलो अणंतपदेसियं खंधं 'अणंतपदेसिए खंधे ति जाति पासति तहा णं सिद्ध वि अणंतपदेसियं जाव पासति? हंता, जाणति पासति / सेवं भंते ! सेवं भंते! ति। / / चोद्दसमे सए : दसमो उद्देसओ समत्तो // 14-10 // चोद्दसमं सयं समत्तं // 14 // [24] इसी प्रकार यावत् प्र. भगवन ! जैसे केवलो, अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध को, 'यह अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध है'-इस प्रकार जानते-देखते हैं, क्या वैसे हो सिद्ध भी अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध को—'अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध है', इस प्रकार जानते-देखते हैं ? [उ.] हाँ, (गौतम ! ) वे जानते-देखते हैं। यहाँ तक कहना चाहिए। भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है; या कह कर यावत् गौतमस्वामी विचरण करते हैं। विवेचन–प्रस्तुत 13 सूत्रों (सू. 12 से 24 तक) में केवलो और सिद्ध के द्वारा रत्नप्रभापृथ्वी से लेकर ईषत्प्रारभारापृथ्वी तक के तथा एक परमाणुपुद्गल तथा द्विप्रदेशी स्कन्ध से लेकर अनन्तप्र देशी स्कन्ध तक के जानने-देखने के सम्बन्ध में' प्रश्नोत्तर पूर्ववत् किये गए हैं। केवली शब्द से प्राशय-यहाँ भवस्थ केवली से है, क्योंकि सिद्ध के विषय में प्रागे पृथक् प्रश्न किया गया है। // चौदहवां शतक, दसवां उद्देशक समाप्त // // चौदहवां शतक सम्पूर्ण / / 1. बियाहपण्णत्तिनुत्त (मुलपाठ-टिप्पणयुक्त) पृ. 687-685 2. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 658 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org