________________ चौदहवां शतक : उद्देशक 10] [429 [6 प्र.] इसी प्रकार केवलज्ञानी भी सिद्ध को जानते-देखते हैं। किन्तु प्रश्न यह है कि जिस प्रकार केवलज्ञानी सिद्ध को जानते-देखते हैं, क्या उसी प्रकार सिद्ध भी (दूसरे) सिद्ध को जानतेउत्तर देखते हैं ? [6 उ.] हाँ, (गौतम ! ) वे जानते-देखते हैं। विवेचन केवलज्ञानी और सिद्ध के ज्ञान सम्बन्धी प्रश्नोत्तर–प्रस्तुत 6 सूत्रों में क्रमश: सात प्रश्नोत्तर अंकित हैं-(१) क्या केवली छमस्थ को, (2) सिद्ध छद्मस्थ को, (3) केवली अवधिज्ञानी को, (4) केवली और सिद्ध परमावधिज्ञानी को, (5) केवली और सिद्ध केवलज्ञानी को, (6) केवलज्ञानी सिद्ध को तथा (7) सिद्ध सिद्धभगवान को जानते-देखते हैं ? इन सातों के ही शास्त्रीय 'हाँ' में हैं। केवली और सिद्धों द्वारा भाषण, उन्मेषण-निमेषणादिक्रिया-प्रक्रिया की प्ररूपरणा 7. केवली णं भंते ! भासेज्ज वा बागरेज्ज वा ? हंता, भासेज्ज वा वागरेज्ज वा। [7 प्र.] भगवन् ! क्या केवलज्ञानी बोलते हैं, अथवा प्रश्न का उत्तर देते हैं ? [7 उ. हाँ, गौतम ! वे बोलते भी हैं और प्रश्न का उत्तर भी देते हैं / 8. [1] जहा णं भंते ! केवली भासेज्ज वा बागरेज्ज वा तहा णं सिद्ध वि भासेज्ज वा वागरेज्ज वा? नो तिण8 समठे। [8-1 प्र.] भगवन् ! जिस प्रकार केवली बोलते हैं या प्रश्न का उत्तर देते हैं, उसी प्रकार सिद्ध भी बोलते हैं और प्रश्न का उत्तर देते हैं ? [8-1 उ.] यह अर्थ (बात) समर्थ (शक्य) नहीं है / [2] से केणढणं भंते ! एवं बुचइ जहाणं केवली भासेज्ज वा वागरेज वा नो तहाणं सिद्ध भासेज्ज वा वागरेज्ज वा ? ___ गोयमा ! केवली गं सउढाणे सकम्मे सबले सीरिए सपरिसक्कारपरक्कमे, सिद्ध णं अणुट्ठाणे जाव अपरिसक्कारपरक्कमे, से तेणढणं जाव वागरेज्ज वा / [8.2 प्र.] भगवन् ! ऐसा क्यों कहते हैं कि केवली बोलते हैं एवं प्रश्न का उत्तर देते हैं, किन्तु सिद्ध भगवान् बोलते नहीं हैं और न प्रश्न का उत्तर देते हैं ? [8.2 उ.] गौतम ! केवलज्ञानी उत्थान, कर्म, बल, वीर्य एवं पुरुषकार-पराक्रम से सहित हैं, जबकि सिद्ध भगवान् उत्थानादि यावत् पुरुषकार-पराक्रम से रहित हैं / इस कारण से, हे गौतम ! सिद्ध भगवान् के वलज्ञानी के समान नहीं बोलते और न प्रश्न का उत्तर देते हैं। 9. केवली णं भंते ! उम्मिसेज्ज या निमिसेज्ज बा ? हंता, उम्मिसेज्ज वा निमिसेज्ज वा, एवं चेव / [प्र. भगवन् ! केवलज्ञानी अपनी आँखें खोलते हैं, अथवा मूदते हैं ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org