________________ दसमो उद्देसओ : 'केवली' दसवाँ उद्देशक : केवली (और सिद्ध का ज्ञान) केवली एवं सिद्ध द्वारा छद्मस्थादि को जानने देखने का सामर्थ्य निरूपण 1. केवली णं भंते ! छउमत्थं जाणति पासति ? हंता, जाणति पासति / [1 प्र. भगवन् ! क्या केवलज्ञानी छद्मस्थ को जानते-देखते हैं ? [1 उ.] हाँ (गौतम ! ) जानते-देखते हैं / 2. जहाणं भंते ! केवली छउमत्थं जाणति पासति तहा गं सिद्ध वि छउमत्थं जाणति पासति ? हंता, जाणति पासति / [2 प्र. भगवन् ! जिस प्रकार केवलज्ञानी, छद्मस्थ को जानते-देखते हैं, क्या उसी प्रकार सिद्ध भगवान् भी छद्मस्थ को जानते-देखते हैं ? [2. हाँ, (गौतम ! ) (वे भी उसी तरह) जानते-देखते हैं। 3. केवली णं भंते ! आहोहियं जाणति पासति ? एवं चेव / [3 प्र.] भगवन् ! क्या केवलज्ञानी, आधोवधिक (प्रतिनियत क्षेत्र-विषयक अवधिज्ञान वाले) को जानते-देखते हैं ? [3 उ.] हाँ, गौतम ! वे जानते-देखते हैं / 4. एवं परमाहोहियं / [4] इसी प्रकार परमावधिज्ञानी को भी (केवली एवं सिद्ध जानते-देखते हैं, यह कहना चाहिए।) 5. एवं केलि / [5] इसी प्रकार के वलज्ञानी एवं सिद्ध यावत् केवलज्ञानी को जानते-देखते हैं। 6. एवं सिद्ध जाव, जहा णं भंते ! केवलो सिद्ध जाणति पासति तहा णं सिद्ध वि सिद्ध जाणति पासति? हंता, जाणति पासति / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org