________________ 414] [व्याख्याप्रप्तिसूत्र _ [16-1 प्र.] भगवन् ! सूर्य के ताप से पीडित, तृषा से व्याकुल तथा दावानल को ज्वाला से प्रज्वलित यह शाल-यष्टिका कालमास में काल करके कहाँ जाएगी ? , कहाँ उत्पन्न होगी ? (19-1 उ.] गौतम ! इसी जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में विन्ध्याचल के पादमूल (तलहटी) में स्थित माहेश्वरी नगरी में शाल्मलो (समर) वृक्ष के रूप में पुन: उत्पन्न होगी। वहाँ वह चित, वन्दित और पूजित होगी; यावत् उसका चबूतरा लीपा-पोता हुआ होगा और वह पूजनीय होगी / [2] से णं भंते ! तओहितो अणंतरं०, सेसं जहा सालरुक्खस्स जाव अंतं काहिति / [16-2 प्र.] भगवन् ! वह वहाँ से काल कर के कहाँ जाएगी? कहाँ उत्पन्न होगी ? [19-2 उ.] गौतम (पूर्वोक्त) शालवृक्ष के समान (इसके विषय में भी) यावत् वह सर्वदुःखों का अन्त करेगी, (यहाँ तक कहना चाहिए / ) 20. [1] एस णं भंते ! उंबरलट्ठिया उण्हाभिहया तण्हाभिहया दवग्गिजालाभिहया कालमासे कालं जाव कहि उक्वज्जिहिति ? गोयमा ! इहेब जंबुद्दीवे दोघे भारहे वासे पाडलिपुत्ते नाम नगरे पाडलिहक्खत्ताए पच्चायाहिति / से णं तत्थ अच्चितवंदिय जाव भविस्सइ / [20.1 प्र.] भगवन् ! दृश्यमान सूर्य की उष्णता से संतप्त, तषा से पीडित और दावानल को ज्वाला से प्रज्वलित यह (प्रत्यक्ष दृश्यमान) उदुम्बरयष्टिका (उम्बर वृक्ष की शाखा) कालमास में काल करके कहाँ जाएगी ? कहाँ उत्पन्न होगी? [20-1 उ.] गौतम ! इसी जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में पाटलिपुत्र नामक नगर में पाटली वृक्ष के रूप के पुनः उत्पन्न होगी। वह वहाँ अचित, वन्दित यावत् पूजनीय होगी। [2] से गं भंते ! अणंतरं उच्चट्टित्ता / सेसं तं चेव जाव अंतं काहिति / [20-2 प्र.] भगवन् ! वह (पूर्वोक्त उदुम्बर-यष्टिका) यहाँ से काल करके कहाँ जाएगी? कहाँ उत्पन्न होगो ? [20-2 उ.] गौतम ! पूर्ववत् समग्न कथन करना चाहिए, यावत्-वह सर्वदुःखों का अन्त करेगी। विवेचनराजगह में विराजमान भगवान् महावीर से वनस्पति में जीवत्व के प्रति अश्रद्धाल श्रोताओं (व्यक्तियों) की अपेक्षा से श्री गौतमस्वामी ने प्रत्यक्ष दृश्यमान शालवृक्ष, शालयष्टिका और उदुम्बरयष्टिका के भविष्य में अन्य भव में उत्पन्न होने आदि के सम्बन्ध में तीन प्रश्न (तीन सूत्रों 18-16-20 में) उठाए हैं, जिनका यथार्थ समाधान भगवान् ने किया है।' 1. भगवती. अ. त्ति, पत्र 653 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org