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________________ 402 [व्यास्याप्रज्ञाप्तिसूत्र विवेचन-कालतुल्य का तात्पर्य-समय, प्रावलिका, दिन, सप्ताह, पक्ष, मास प्रादि को काल कहते हैं। एक समय की स्थिति वाला पुद्गल, दूसरे एक समय की स्थिति वाले पुद्गल के साथ काल है. किन्त एक समय के अतिरिक्त दो आदि समयों की स्थिति वाला पुदगल काल से तुल्य भवतुल्यनिरूपण 8. से केणठेणं भंते ! एवं युच्चइ 'भवतुल्लए, भवतुल्लए' ? गोयमा ! नेरइए नेरइयस्स भवट्ठयाए तुल्ले, नेरइए नेरइयतिरिसस्स भवट्ठयाए नो तुल्ले / तिरिक्खजोगिए एवं चेव / एवं मणुस्से / एवं देवे वि / से तेणठेणं जाव भवतुल्लए, भवतुल्लए। [8 प्र.] भगवन् ! 'भवतुल्य' भवतुल्य क्यों कहलाता है ? [8 उ.] गौतम ! एक नै रयिक जीव, दूसरे नैरयिक जीव (या जीवों) के साथ भव-तुल्य है, किन्तु र यिक जीवों के अतिरिक्त (तिर्यञ्च-मनुष्यादि दूसरे जीवों) के साथ नरयिक जीव, भव से तुल्य नहीं है / इसी प्रकार तिर्यञ्चयोनिकों के विषय में समझना चाहिए / मनुष्यों के तथा देवों के विषय में भी इसी प्रकार समझना चाहिए / इस कारण, हे गौतम ! 'भवतुल्य' 'भवतुल्य' कहलाता है। विवेचन-भवतुल्य का भावार्थ-नरक, तिर्यञ्च, मनुष्य और देव इन चार भवों में से जो प्राणी जिस प्राणी के साथ भव की अपेक्षा तुल्य—समान- है, वह भवतुल्य कहलाता है। नरक भव के जीव की तिर्यञ्चादि भव के जीव के साथ भवतुल्यता नहीं है।' भावतुल्यनिरूपण 9. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ 'भावतुल्लए, भावतुल्लए' ? गोयमा! एगगुणकालए पोग्गले एगगुणकालगस्स पोग्गलस्स भावओ तुल्ले, एगगुणकालए पोग्गले एगगुणकालगतिरित्तस्स पोग्गलस्स भावओ गो तुल्ले / एवं जाव दसगुणकालए। तुल्लसंखेज्जगुणकालए पोग्गले तुल्लसंखेज्जः / एवं तुल्लप्रसंखेज्जगुणकालए वि / एवं तुल्लप्रणंतगुणकालए वि। जहा कालए एवं नीलए लोहियए हालिद्दए सुकिल्लए / एवं सम्भिगन्धे दुब्भिगंधे एवं तित्ते जाव महुरे / एवं कक्खडे जाव लुक्खे / उदइए भावे उदइयस्स भावस्स भावओ तुल्ले, उदइए भावे उदइयभावबारित्तस्स मावस्स भावओ नो तुल्ले / एवं उपसमिए खइए खयोवसमिए पारिणामिए, सन्निवातिए भावे सन्निवातियस्स भावस्स / से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चति 'भावतुल्लए, भावतुल्लए'। [6 प्र. भगवन् ! 'भावतुल्य' भावतुल्य किस कारण से कहलाता है ? [6 उ.] गौतम ! एकगुण काले वर्ण वाला पुद्गल, दूसरे एकगुण काले वर्ण वाले पुद्गल के साथ भाव से तुल्य है किन्तु एक गुण काले वर्ण वाला पुद्गल, एक गुण काले वर्ण से अतिरिक्त दूसरे पुद्गलों के साथ भाव से तुल्य नहीं है / इसी प्रकार यावत् दस गुण काले पुद्गल तक कहना चाहिए / इसी प्रकार तुल्य संख्यात-गुण काला पुद्गल तुल्य संख्यातगुण काले पुद्गल के साथ, तुल्य 1. भवो–नारकादिः तेन तुल्यता यस्याऽसौ भवतुल्यः। -भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 649 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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