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________________ चौदहवां शतक : उद्देशक 7] [401 विवेचन-द्रव्यतुल्य : दो अर्थ-(१) द्रव्यतः—एक अणु आदि की अपेक्षा से जो तुल्य हो, वह द्रव्यतुल्य है, अथवा (2) जो द्रव्य, दूसरे द्रव्य के साथ तुल्य हो, वह द्रव्यतुल्य है।' क्षेत्रतुल्यनिरूपण 6. से केणटुणं भंते ! एवं वुच्चइ 'खेत्ततुल्लए, खेत्ततुल्लए' ? गोयमा ! एगपदेसोगाढे पोग्गले एगपदेसोगाढस्स पोग्गलस्स खेत्तओ तुल्ले, एगपदेसोगाढेपोग्गले एगपएसोगाढवतिरित्तस्स पोग्गलस्स खेत्तनो णो तुल्ले / एवं जाव दसपदेसोगाढे, तुल्लसंखेज्जपदेसोगाढे तुल्लसंखेज्ज / एवं तुल्लप्रसंखेज्जपदेसोगाढे वि / से तेण?णं जाव खेत्ततुल्लए / [6 प्र. भगवन् ! 'क्षेत्रतुल्य क्षेत्रतुल्य क्यों कहलाता है ? [6 उ.] गौतम ! एकप्रदेशावगाठ (आकाश के एक प्रदेश पर रहा हुआ) पुद्गल दूसरे एकप्रदेशावगाढ पुद्गल के साथ क्षेत्र से तुल्य कहलाता है; परन्तु एकप्रदेशावगाढ-व्यतिरिक्त पुद्गल के साथ, एकप्रदेशावगाळ पुद्गल क्षेत्र से तुल्य नहीं है / इसी प्रकार यावत्-...दस-प्रदेशावगाढ पुद्गल के विषय में भी कहना चाहिए तथा एक तुल्य संख्यात-प्रदेशावगाढ पुद्गल, अन्य तुल्य संख्यात-प्रदेशावगाढ पुद्गल के साथ तुल्य होता है / इसी प्रकार तुल्य असंख्यात-प्रदेशावगाढ पुद्गल के विषय में भी कहना चाहिए / इसी कारण से, हे गौतम ! 'क्षेत्रतुल्य' क्षेत्रतुल्य कहलाता है। विवेचन क्षेत्रतुल्य का अर्थ-जहां दो क्षेत्र, एकप्रदेशावगाढत्व प्रादि की अपेक्षा से तुल्य हों, वहाँ क्षेत्रनुल्य कहलाता है / कालतुल्यनिरूपरण 7. से केण?णं भंते ! एवं वच्चति 'कालतुल्लए, कालतुल्लए' ? गोयमा ! एगसमठितीए पोग्गले एम० कालमो तुल्ले, एगसमयठितीए पोग्गले एगसमयठितीयवतिरित्तस्स पोग्गलस्स कालओ णो तुल्ले / एवं जाव दससमय द्वितीए / तुल्लसंखेज्जसमठितीए एवं चेव / एवं तुल्लअसंखेज्जसमयट्टितीए वि / से तेण?णं जाव कालतुल्लए, कालतुरुलए / [7 प्र.] भगवन् ! 'कालतुल्य' कालतुल्य क्यों कहलाता है ? [7 उ.] गौतम ! एक समय की स्थिति वाला पुद्गल, अन्य एक समय को स्थिति वाले पुद्गल के साथ काल से तुल्य है; किन्तु एक समय की स्थिति वाले पुद्गल के अतिरिक्त दूसरे पुद्गलों के साथ, एक समय की स्थिति वाला पुद्गल काल से तुल्य नहीं है। इसी प्रकार यावत् दस समय की स्थिति वाले पुद्गल तक के विषय में कहना चाहिए / तुल्य संख्यातसमय की स्थिति वाले पुद्गल तक के विषय में भी इसी प्रकार कहना चाहिए और तुल्य असंख्यातसमय की स्थिति वाले पुद्गल के विषय में भी इसी प्रकार कहना चाहिए। इस कारण से, हे गौतम ! 'कालतुल्य' कालतुल्य कहलाता है। 1. द्रव्यतः—एकाणु काद्यपेक्षया तुल्यक द्रव्यतुल्यकम् / अथवा द्रव्यं च तत्तुल्यकं च द्रब्यान्त रेणे ति द्रव्यतुल्यकम् विशेषणव्यत्ययात् / -भगवती. अ. कृत्ति, पत्र 649 2. क्षेत्रतः-एकप्रदेशावमा इत्यादिना तुल्यकं क्षेत्रतुल्यकम् / -भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 649 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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