________________ चौदहवां शतक : उद्देशक 5] [385 [उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है, क्योंकि उन पर अग्निरूप शस्त्र नहीं चल सकता अर्थात् अग्नि का असर नहीं होता। उनमें से जो अविग्रहगतिसमापन्नक नैरयिक हैं वे अग्निकाय के मध्य में होकर नहीं जा सकते, (क्योंकि नरक में वादर अग्नि नहीं होती)। इसलिए हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि कोई नैरयिक जा सकता है और कोई नहीं जा सकता। 2. [1] असुरकुमारे गं भंते अगणिकायस्स० पुच्छा। गोयमा ! अत्थेगतिए बोलीवएज्जा, अत्थेगतिए नो बीतीवएज्जा / [2-1 प्र.] भगवन् ! असुरकुमार देव अग्निकाय के मध्य में हो कर जा सकते हैं ? [2-1 उ.] गौतम ! कोई जा सकता है और कोई नहीं जा सकता। [2] से केण?णं जाव नो बीतीवएज्जा? गोयमा ! असुरकुमारा दुविहा पन्नत्ता, तं जहा-विगहमतिसमावन्नगा य अविग्गहगतिसमावन्नगा य / तत्थ गंजे से विग्गहमतिसमावन्नए असुरकुमारे से णं एवं जहेव नेरतिए जाव कमति / तत्थ णं जे ले अविग्गहगतिसमावन्नए असुरकुमारे से णं अत्थेगतिए अगणिकायरस मज्झमझेणं वीतीवएज्जा, अत्थेगइए नो बीइवएज्जा / जे णं बीतीवएज्जा से णं तत्थ झियाएज्जा? नो इण? सम। मो खलु तत्थ सत्थं कमति / से तेण? गं० / 2-2 प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि कोई असुरकुमार अग्नि के मध्य में हो कर जा सकता है, और कोई नहीं जा सकता ? 2-2 उ.] गौतम! असुरकुमार दो प्रकार के कहे गए हैं / यथा--विग्रहगति-समापन्नक और अविग्रहगति-समापनक। उनमें से जो विग्रहगति-समापन्नक असुरकुमार हैं, वे नैरपिकों के समान हैं, यावत् उन पर अग्नि-शस्त्र असर नहीं कर सकता। उनमें जो अविग्रहगति-समापन्नक असुरकुमार हैं, उनमें से कोई अग्नि के मध्य में हो कर जा सकता है और कोई नहीं जा सकता। [प्र.] जो (असुरकुमार) अग्नि के मध्य में हो कर जाता है, क्या वह जल जाता है ? उ. गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है, क्योंकि उस पर अग्नि आदि शस्त्र का असर नहीं होता / इसी कारण हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि कोई असुरकुमार जा सकता है और कोई नहीं / जा सकता। 3. एवं जाव थणियकुमारे / [3] इसी प्रकार (नागकुमार से लेकर) यावत् स्तनितकुमार देव (तक कहना चाहिए / ) 4. एगिदिया जहा नेरइया। [4] एकेन्द्रियों के विषय में नैरविकों के समान कहना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org