________________ पंचमो उद्देसओ : 'अगरणी' पंचम उद्देशक : अग्नि 'सं. गाहा–नेरइयं अगणिमझे दस ठाणा तिरिय पोग्गले देवे / पव्वय भित्तो उल्लंघणा य पल्लंघणा चेव / / उद्देशक-विषयक संग्रहगाथा का अर्थ---पंचम उद्देशक में मुख्य प्रतिपाद्य विषय तीन हैं - (1) नैरयिक आदि (से लेकर वैमानिक पर्यन्त) का अग्नि में से होकर गमन, (2) चौवोस दण्डकों में दस स्थानों के इष्टानिष्ट अनुभव और (3) देव द्वारा बाह्य पुद्गलग्रहणपूर्वक पर्वतादि के उल्लंघनप्रलंघन का सामर्थ्य / चौवीस दण्डकों की अग्नि में होकर गमनविषयक-प्ररूपणा 1. [1] नेरइए णं भंते ! अगणिकायस्स मज्झमझेणं बीतीवएज्जा ? गोयमा ! अत्थेगतिए वीतीवएज्जा, अत्थेगतिए नो वीतीवएज्जा / [1.1 प्र.] भगवन् ! नै रयिक जीव अग्निकाय के मध्य में हो कर जा सकता है ? [1-1 उ.] गौतम ! कोई नैरयिक जा सकता है और कोई नहीं जा सकता / [2] से केण?णं भंते ! एवं बुच्चइ 'प्रत्थेगतिए वीतीवएज्जा, अत्थेगतिए नो वीतीवएज्जा ? गोयमा ! नेरइया दुविहा पन्नत्ता, तं जहा --विग्गहगतिसमावन्नगा य अविगहगतिसमावन्नगा य। तत्थ णं जे से विग्गहगलिसमावन्नए नरतिए से णं अगणिकायस्स मज्झन्भेणं वीतीवएज्जा / से णं तत्थ झियाएज्जा? णो इ8 सम8। नो खलु तत्थ सत्थं कमति / तत्थ पंजे से अविग्गहगतिसमावन्नए नेरइए से णं अगणिकायस्स मज्झमझेणं णो वीतीवएज्जा / से तेण?णं जाव नो वीतीवएज्जा / [1-2 प्र.] भगवन् ! यह किस कारण से कहते हैं कि कोई नैरयिक जा सकता है और कोई नहीं जा सकता? [1-2 उ.] गौतम ! नैरयिक दो प्रकार के कहे गये हैं / यथा--विग्रहगति-समापनक और प्रविग्रहगति-समापन्नक / उनमें से जो विग्रहगति-समापक नै रयिक हैं, वे अग्निकाय के मध्य में होकर जा सकते हैं। [प्र. भगवन् ! क्या (वे अग्नि के मध्य में से हो कर जाते हुए) अग्नि से जल जाते हैं ? 1. [ यह उद्देश कार्थ-संग्रहगाथा बत्ति में है। अ. वृ. 642 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org