________________ चौदहवां शतक : उद्देशक 4] [383 इसलिए उस अपेक्षा काल से परमाणु चरम है और विशेषण-रहित काल की अपेक्षा परमाणु अचरम है। भाव की अपेक्षा -परमाणु चरम भी है और अचरम भी। यथा--केवली-समुद्घात के समय जो परमाणु वर्णादि भावविशेष को प्राप्त हुआ था, वह परमाणु विवक्षित केवली-समुद्घात विशिष्ट वर्णादि परिणाम की अपेक्षा वरम है, क्योंकि केवलज्ञानी के निर्वाण प्राप्त कर लेने से वह परमाणु पुनः उस विशिष्ट परिणाम को प्राप्त नहीं होता। विशेषणरहित भाव की अपेक्षा वह अचरम है / यह व्याख्या चूणि कार के मतानुसार की गई है / ' कठिनशब्दार्थ-दव्वदुयाए-द्रव्य की अपेक्षा। बग्णपज्जवेहि वर्ष के पर्यायों से / दव्वादेसेणं-द्रव्यादेश (द्रव्य की अपेक्षा से) / चरिमे--अन्तिम / प्रचरिमे-अचरम / ' परिणाम : प्रज्ञापनाऽतिदेशपूर्वक भेद-प्रभेद-निरूपण 10. कतिविधे णं भंते ! परिणामे पन्नते? गोयमा ! दुविहे परिणाम पन्नते, तं जहा–जीवपरिणामे य, अजीवपरिणामे य। एवं परिणामपदं निरवसेसं भाणियब्वं / सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति जाव विहरति / ॥चोइसमे सए : चउत्थो उद्देसओ समत्तो // 14.4 // [10 प्र. भगवन् ! परिणाम कितने प्रकार का कहा गया है ? [10 उ.] गौतम ! परिणाम दो प्रकार का कहा गया है / यथा--जीवपरिणाम और अजीवपरिणाम। इस प्रकार यहाँ प्रज्ञापनासूत्र का समग्र परिणामपद (तेरहवाँ पद) कहना चाहिए / हे भगवन ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है--यों कह कर यावत् गौतम स्वामी विचरते हैं। विवेचन--परिणाम : लक्षण और भेद-प्रभेद-द्रव्य का सर्वथा एक रूप में नहीं रहना अर्थात् द्रव्य की अवस्थान्तर-प्राप्ति ही परिणाम है / परिणाम के मुख्यतया दो भेद हैं--जीवपरिणाम और अजीवपरिणाम / जीवपरिणाम के दस भेद हैं-[१) गति, (2) इन्द्रिय, (3) कषाय, (4) लेश्या, (5) योग, (6) उपयोग, (7) ज्ञान, (8) दर्शन, (6) चारित्र और (10) वेद / अजीव-परिणाम के भी 10 भेद हैं-(१) वन्धन, (2) गति, (3) संस्थान, (4) भेद, (5) वर्ण, (6) गन्ध, (7) रस, (8) स्पर्श, (6) अगुरुलघु और (10) शब्दपरिणाम / चौदहवां शतक : चतुर्थ उद्देशक समाप्त // 1. (क) भगवती. अ. बनि, पत्र 647 (ख) भगवती. (हिन्दी विवेचन) भा. 5, पृ. 2308 2. बही (हिन्दी विवेचन) भा.५, पृ. 2306 3. भगवती. अ. वत्ति, पत्र 641 / / 4. (क) भगवती. अ. ति, पत्र :81 (य) प्रज्ञापनासूत्र (नगणवणासुतं भा. 1 मू. 925.57 (महावीर विद्यालय प्रकाशन) पृ. 229 से 233 तक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org