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________________ 382] | व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र 9. परमाणुपोग्गले णं भंते ! कि चरिमे, अचरिमे ? गोयमा ! दन्वादेसेणं नो चरिमे, अचरिमे ; खेत्तादेसेणं सिय चरिमे, सिय अचरिमे; कालादेसेणं सिय चरिमे, सिय अचरिमे; भावादेसेणं सिय चरिमे, सिय अचरिमे / [प्र.] भगवन् ! परमाणु-पुद्गल चरम है या अचरम ? 9i उ.] गौतम ! द्रव्य की अपेक्षा (द्रव्यादेश से) चरम नहीं, अचरम है; क्षेत्र की अपेक्षा (क्षेत्रादेश से) कथंचित् चरम है और कथंचित् अचरम है; काल की अपेक्षा (कालादेश से) कदाचित् चरम है और कदाचित् अचरम है तथा भावादेश से भी कचित् चरम है और कथंचित अचरम है। विवेचन--प्रस्तुत दो सूत्रों में से 8 व सूत्र में परमाणपुद्गल की शाश्वतता-अशाश्वतता का और नौवे सूत्र में उसकी च रमता-अचरमता का प्रतिपादन किया गया है / परमाणपुदगल शाश्वत कैसे, अशाश्वत कैसे ?- परमाणुपुद्गल द्रव्य की अपेक्षा से शाश्वत है, क्योंकि स्कन्ध के साथ मिल जाने पर भी उसकी सत्ता नष्ट नहीं होती। उस समय वह 'प्रदेश' कहलाता है / किन्तु वर्गादि पर्यायों की अपेक्षा परमाणुपुद्गल अशाश्वत है. क्योंकि पर्यायें विनश्वर हैं; परिवर्तनशील हैं।' चरम, अचरम को परिभाषा : परमाणु की अपेक्षा से-जो परमाणु विवक्षित परिणाम से रहित होकर पुनः उस परिणाम को कदापि प्राप्त नहीं होता, वह परमाणु, उस परमाणु की अपेक्षा 'चरम' कहलाता है / जो परमाणु उस परिणाम को पुनः प्राप्त होता है, वह उस अपेक्षा से 'अचरम' कहलाता है। परमाणपुदगल चरम कैसे, अचरम कैसे ?- द्रव्य को अपेक्षा से--परमाणु चरम नहीं, अचरम है, क्योंकि परिणाम से रहित बना हुया परमाणु संघात-परिणाम को प्राप्त होकर पुनः कालान्तर में परमाणु-परिणाम को प्राप्त होता है। क्षेत्र की अपेक्षा से-- परमाणु कथंचित् चरम और कथंचित् अचरम है / जिस क्षेत्र में किसी केवलज्ञानी ने केबलीसमुद्घात किया था, उस समय जो परमाणु वहाँ रहा हुआ था, वह समुद्घात-प्राप्त उक्त केवलज्ञानी के सम्बन्ध-विशेष से बह परमाणु पुन: कदापि उस क्षेत्र को आश्रय नहीं करता, क्योंकि वे समुद्घात-प्राप्त के वली निर्वाण को प्राप्त हो चुके हैं। वे अब उस क्षेत्र में पुन: कभी भी नहीं पायेंगे / इसलिए उस क्षेत्र की अपेक्षा वह परमाणु 'चरम' कहलाता है। किन्तु विशेषणरहित क्षेत्र की अपेक्षा परमाणु फिर उस क्षेत्र में अवगाढ होता है, इसलिए 'अचरम कहलाता है। काल की अपेक्षा से परमाणुपुद्गल कदाचित् चरम और कदाचित् अचरम है / यथा-जिस प्रातःकाल आदि समय में केवली ने समुद्घात किया था, उस काल में जो परमाणु रहा हुया था, वह परमाणु उस केबलो-समुद्घात-विशिष्ट काल को प्राप्त नहीं कर सकता, क्योंकि वे केवलज्ञानी मोक्ष चले गए / अतः वे पुनः कभी समुद्घात नहीं करेंगे। 1. भगवती. अ. बृत्ति, पत्र 640 2. (क) वही, अ. वृत्ति, पत्र 640 (ख) भगवती. (हिन्दीविवेचन) भा. 5 पृ. 2308 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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