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________________ बीओ उद्देसओ : 'उम्माद' द्वितीय उद्देशक : उन्माद ( प्रकार, अधिकारी) उन्माद : प्रकार, स्वरूप और चौवीस दण्डकों में सहेतुक प्ररूपणा 1. कतिविधे णं भंते ! उम्मादे पन्नत्ते? गोयमा ! दुविहे उम्मादे पण्णत्ते, तं जहा--जक्खाएसे य मोहणिज्जस्स य कम्मरस उदएणं / तत्थ णं जे से जनखाएसे से णं सुहवेयणतराए चेव, सुहविमोयणतराए चेव / तत्थ णं जे से मोहणिज्जस्स कम्मस्स उदएणं से णं दुहवेयणतराए चेव, दुह विमोयणतराए चेव / [1 प्र.] भगवन् ! उन्माद कितने प्रकार का कहा गया है ? [1 उ.] गौतम ! उन्माद दो प्रकार का कहा गया है। यथा-यक्षावेश से और मोहनीय कर्म के उदय से (होने वाला)। इनमें से जो यक्षावेशरूप उन्माद है, उसका सुखपूर्वक वेदन किया जा सकता है और वह सुखपूर्वक छुड़ाया (विमोचन कराया जा सकता है। (किन्तु) इनमें से जो मोहनीयकर्म के उदय से होने वाला उन्माद है, उसका दुःखपूर्वक वेदन होता है और दुःखपूर्वक ही उससे छुटकारा पाया जा सकता है। 2. [1] नेरइयाणं भंते ! कतिविधे उम्मादे पन्नते ? गोयमा! दुविहे उम्मादे पन्नत्ते, तं जहा---जक्खाएसे य, मोहणिज्जस्स य कम्मस्स उदएणं / [2-1 प्र.] भगवन् ! नारक जीवों में कितने प्रकार का उन्माद कहा गया है ? [2-1 उ.] गौतम ! उनमें दो प्रकार का उन्माद कहा गया है। यथा-यक्षावेशरूप उन्माद और मोहनीय कर्म के उदय से होने वाला उन्माद / [2] से केणटुणं भंते ! एवं वुच्चइ 'नरइयाणं दुविहे उम्मादे पन्नत्ते, तं जहा जक्खाएसे य, मोहणिज्जस्स जाव उदएणं' ? | गोयमा ! देवे वा से असुभे पोग्गले पक्खिवेज्जा, से णं तेसि असुभाणं पोग्गलाणं पविखवणयाए जक्खाएसं उम्मायं पाउणिज्जा / मोहणिज्जस्स वा कम्मस्स उदएणं मोहणिज्जं उम्मायं पाउणेज्जा, से तेगट्ठणं जाव उदएणं। [2-2 प्र.] भगवन् ! ऐसा क्यों कहा जाता है कि नारकों के दो प्रकार के उन्माद कहे गए हैं, यक्षावेशरूप और मोहनीयकर्म के उदय से होने वाला ? [2-2 उ.] गौतम ! यदि कोई देव, नरयिक जीव पर अशुभ पुद्गलों का प्रक्षेप करता है, तो उन अशुभ पुद्गलों के प्रक्षेप से वह नैरयिक जीव यक्षावेशरूप उन्माद को प्राप्त होता है और मोहनीय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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