________________ [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र (7) जैसे हंस एक तट से दूसरे तट पर क्रीड़ा करता हया जाता है, क्या उसी प्रकार ? ........ (8) जैसे समुद्री कौआ एक लहर से दूसरो लहर को अतिक्रमण करता-करता जाता है, क्या उसी प्रकार? ....." इन पाठों ही प्रश्नों का उत्तर स्वीकृति सूचक है।' कठिन शब्दों का अर्थ-वरंगुली-चर्मपक्षी-चमचेड़ / जन्नोवइय-यज्ञोपवीत / उबिहियउत्प्रेरित करके-ठेल ठेल कर / बीयंबीयग-सउणे-बोजबीजक नाम का पक्षीविशेष / समतुरंगेमाणे --दोनों पैर अश्व के समान एक साथ उठाता हुआ / पक्खिबिरालए-पक्षी विडालक नामक प्राणी / डेवेमाणे-अतिक्रमण करता-लांघता हुग्रा या छलांग लगाता हुअा। वीईओ वोइंएक तरंग से दूसरी तरंग पर / ' चक्र, छत्र, चर्म, रत्नादि लेकर चलने वाले पुरुषवत् भावितात्मा अनगार को विकुर्वणाशक्तिनिरूपण 16. से जहानामए केयि पुरिसे चक्कं गहाय गच्छेज्जा, एवामेव अणगारे वि भावियप्पा चक्कहत्थकिच्चगएणं अप्पाणे०, सेसं जहा केयाघडियाए / 16 प्र.] (भगवन ! ) जैसे कोई पुरुष हाथ में चक्र ले कर चलता है, क्या वैसे ही भावितात्मा अनगार भी (वैक्रियशक्ति से) तदनुसार विकुर्वणा करके चक्र हाथ में ले कर स्वयं ऊँचे आकाश में उड़ सकता है ? [16 उ.] (हाँ, गौतम ! ) सभी कथन रज्जुबद्धघटिका के समान जानना चाहिए / 17. एवं छत्तं। |17] इसी प्रकार छत्र के विषय में भी कहना चाहिए / 18. एवं चम्मं / [18] इसी प्रकार चर्म (या चामर) के सम्बन्ध में भी कथन करना चाहिए / 19. से जहानामए केयि पुरिसे रयणं गहाय गच्छेज्जा, एवं चेव / एवं वइरं, वेरुलियं, जाव' रिट्ठ। [16 प्र. (भगवन् ! ) जैसे कोई पुरुष रत्न लेकर गमन करता है, (क्या उसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न)। [16 उ.] (गौतम ! ) यहाँ भी पूर्ववत् कहना चाहिए। इसी प्रकार वज्र, वैडूर्य यावत् रिष्ट रत्न तक पूर्ववत् पालापक कहना चाहिए। 1. वियाहपण तिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पणयुक्त) भा. 2, पृ. 654 2. भगवती. अ. वत्ति, पत्र 628 3. पाठान्तर-चामर' 4. 'जाव' पद सूचक पाठ---- "लोहियक्खं मसारगल्लं हंसगमं पुलगं सोगंधियं जोईरसं अंक अंजणं रयणं जायरूवं अंजणपुलगं फलिहं ति / " Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org