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________________ [व्याख्याप्राप्तिसूत्र चमचेड़-यज्ञोपवीत-जलौका-बोजंबोज-समुद्र-वायस आदि को क्रियावत् भावितात्मा वैक्रियशक्तिनिरूपण 8. से जहानामए वग्गुली सिया, दो वि पाए उल्लंबिया उल्लंबिया उड्ढपादा अहोसिरा चिट्ठज्जा, एवामेव अणगारे वि भावियप्पा बागुलीकिच्चगएणं अप्पाणेणं उड्ढं वेहासं० / / [8 प्र.] भगवन् ! जैसे कोई बग्गुलीपक्षी (चमगादड़) अपने दोनों पैर (वृक्ष प्रादि में ऊपर) लटका-लटका कर पैरों को ऊपर और सिर को नीचा किये रहती है, क्या उसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी उक्त चमगादड़ की तरह अपने रूप की विकुर्वणा करके स्वयं ऊँचे अाकाश में उड़ सकता है ? [8 उ.] हाँ, गौतम ! वह (इस प्रकार का रूप बना कर) उड़ सकता है। 9. एवं जण्णोवइयवत्तव्यया भाणितव्वा जाव विउव्विस्संति वा। [1] इसी प्रकार यज्ञोपवीत-सम्बन्धी वक्तव्यता भी कहनी चाहिए / (अर्थात्-जैसे कोई विप्र गले में जनेऊ धारण करके गमन करता है, उसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी विकुर्वणा कर सकता है), (यह वक्तव्यता) यावत् 'सम्प्राप्ति द्वारा विकुर्वणा करेगा नहीं,' (यहाँ तक) कहनो चाहिए। 10. से जहानामए जलोया सिया, उदगंसि कार्य उदिवहिया उविहिया गच्छेज्जा, एवामेव० सेसं जहा वग्गुलोए। [10 प्र. (भगवन् ! ) जैसे कोई जलौका (जौंक-पानी में उत्पन्न होने वाला द्वीन्द्रिय जीवविशेष) अपने शरीर को उत्प्रेरित करके (ठेल-ठेल कर) पानी में चलती है; क्या उसी प्रकार भावि. तात्मा अनगार भी इत्यादि प्रश्न पूर्ववत् ? [10 उ.] (गौतम ! ) यह सभी निरूपण बग्गुलीपक्षी के निरूपण के समान जानना चाहिए / 11. से जहानामए बीयंबीयगसउणे सिया, दो वि पाए समतुरंगेमाणे समतुरंगेमाणे गच्छेज्जा, एवामेव अणगारे०, सेसं तं चेव / [11 प्र. भगवन् ! जैसे कोई बीबीज पक्षी अपने दोनों पैरों को घोड़े की तरह एक साथ उठाता-उठाता हा गमन करता है, क्या उसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी....... इ पूर्ववत् / _[11 उ.] (हाँ, गौतम ! उड़ सकता है), शेष सभी वर्णन पूर्ववत् जानना चाहिए। 12. से जहानामए पविखबिरालए सिया, रुक्खाओ रक्खं डेवेमाणे डेवेमाणे गच्छेज्जा, एवामेव अणगारे०, सेसं तं चेव। [12 प्र. (भगवन् ! ) जिस प्रकार कोई पक्षीबिडालक एक वृक्ष से दूसरे वृक्ष को लांघतालांघता (या एक वृक्ष से दूसरे वृक्ष पर छलांग लगाता-लगाता) जाता है, क्या उसी प्रकार भावि. तात्मा अनगार भी.... " इत्यादि प्रश्न / [12 उ. (हाँ, गौतम ! उड़ सकता है।) शेष सब कथन पूर्ववत् जानना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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